उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में हिमाचल और कश्मीर की तरह सेब की खेती हो रही है, जिससे सेब की खेती करने वाले किसानों की आमदनी में अच्छी-खासी वृद्धि दर्शाई जा रही है।
नैनीताल समाचार: आम तौर पर हिमाचल और कश्मीर के सेब दुनिया भर में मशहूर हैं, लेकिन अब उत्तराखंड के पहाड़ी अंचलों में उगाई जा रही सेब दुनिया के बाजारों में छाने की तैयारी कर रही है। सरकार भी “मिशन एप्पल” के जरिए बागवानों की मदद को आगे आ रही है। नैनीताल जिले की परंपरागत फल पट्टी रामगढ़ और मुक्तेश्वर में सघन बागवानी के जरिए किसानों की आमदनी में बढ़ोत्तरी हो रही है और खेतों में भी हरियाली नजर आ रही है।
धारी तहसील के कसियालेख में होटल चलाने वाले 55 वर्षीय देवेंद्र सिंह बिष्ट ने कोरोना काल में अपने गांव में एक एकड़ ढालदार खेतों में सेब के पौधे लगाए। उन्होंने राज्य के उद्यान विभाग से तकनीकी और आर्थिक मदद का उपयोग किया। वे छोटे आकार के देशी-विदेशी प्रजाति के सेब के पेड़ों से तीन साल में ही अच्छी पैदावार ले रहे हैं। दो सालों में उन्होंने पंद्रह लाख के सेब बाजार में मुहैया करवा चुके हैं। इस लिहाज से उनकी पहल व्यावसायिक नजरिए से उत्साहजनक कही जा सकती है।
सेब की खेती से हुई अच्छी आमदनी
कुछ इसी तरह का प्रयोग कॉरपोरेट सेक्टर में नौकरी करने वाले आनंद सिंह बिष्ट ने अपने बंजर खेतों में किया, आज उनके एक हजार सेब के पेड़ अच्छी आमदनी देने लगे हैं। सेब का बगान विकसित करने के दौरान अर्जित तकनीकी ज्ञान और शोध के बाद उन्होंने खुद की एक कंसल्टेंसी फर्म खोल दी है, जिसके माध्यम से वह जरूरतमंद किसानों को सेब के बागान लगाने में सहायता कर रहे हैं।
पारंपरिक के साथ ही आधुनिक किस्मों की बढ़ी पैदावार
फिलहाल मुक्तेश्वर, रामगढ़ के आसपास के गांवों में सेब की खेती को लेकर आकर्षण बढ़ रहा है। नैनीताल जिले में करीब साढ़े पांच सौ हेक्टेयर इलाके में लगभग दो हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता रहा है। यहां पहले भी रॉयल डिलेसियस, रायमर, फैनी और अन्य पारंपरिक किस्मों के सेबों की पैदावार होती थी। अब यहां किंग रॉट, गाला, स्कारलेट, ग्रीन स्मिथ आदि आधुनिक किस्में भी तैयार हो रही हैं।