आगामी लोकसभा चुनाव की दिशा में, पश्चिमी यूपी में राष्ट्रीय लोकदल, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और समाजवादी पार्टी (सपा) का महत्व बेहद बढ़ गया है। इसका मुख्य कारण यहां के सियासी संकेतिक माहौल की विशेषता है।
लोकसभा चुनाव 2024: आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के संदर्भ में, ‘एनडीए’ (NDA) और ‘इंडिया’ (INDIA) गठबंधन के बीच जो लड़ाई दिख रही है, उसमें जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोक दल (RLD) का महत्वपूर्ण योगदान हो रहा है। बीजेपी (BJP) की ओर से यह प्रयास हो रहा है कि जयंत चौधरी उनकी ओर आएं, वहीं समाजवादी पार्टी (SP) भी गठबंधन को समृद्धि से बनाए रखने का प्रयास कर रही है।
जयंत चौधरी ने हाल ही में ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ जुड़ने का दावा किया है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार वे दोनों दलों के दिशानिर्देशकों को अपनी समर्थन देने के बारे में सोच रहे हैं। उनके द्वारा अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है, और इसलिए सवाल उठता है कि वे बीजेपी और सपा के लिए कितनी महत्वपूर्ण हैं या क्या उनके पास कोई अन्य विकल्प है।
हालांकि, कुछ दिन पहले जयंत चौधरी ने दिल्ली सेवा बिल के वोटिंग के दौरान सदन में अनुपस्थित रहकर उनके ‘एनडीए’ में शामिल होने की चर्चाएं उत्त्पन्न की थीं। साथ ही, उनकी रालोद नेताओं से मुलाकात भी हुई थी, जिसकी तस्वीरें सामने आने के बाद उनके इस मामले में तंत्रीकरण हो गया है। हालांकि जयंत चौधरी ने इन खबरों को खंडन किया है और कहा है कि वे ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ हैं, और उन्होंने सभी विपक्षी दलों की तीसरी बैठक में भी भाग लेने की घोषणा की है।
पश्चिमी यूपी का सियासी समीकरण
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) का खासा प्रभाव है. इस क्षेत्र में 18% जाट मतदाता हैं, जो सीधे 10-12 सीटों पर प्रभाव डालते हैं। संख्या पर नजर डालें तो मथुरा में 40% जाट आबादी है, बागपत में 30%, मेरठ में 26% और सहारनपुर में 20% जाट आबादी है, एक ऐसा समूह जो संभावित रूप से किसी भी राजनीतिक समीकरण की गतिशीलता को बदल सकता है। यहां के बहुसंख्यक मतदाताओं के बीच जयंत चौधरी की पार्टी मजबूत उपस्थिति रखती है. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान एसपी-आरएलडी गठबंधन को इस क्षेत्र से काफी फायदा हुआ। ऐसे में शायद ही सपा इस गठबंधन को तोड़ना चाहेगी.
गौरतलब है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल का खासा प्रभाव है. इस क्षेत्र में 18% का उल्लेखनीय जाट मतदाता आधार है, जो लगभग 10-12 निर्वाचन क्षेत्रों को सीधे प्रभावित करता है। आंकड़ों की बात करें तो मथुरा में 40%, बागपत में 30%, मेरठ में 26% और सहारनपुर में 20% जाट आबादी है। ये प्रतिशत राजनीतिक परिदृश्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने की क्षमता रखते हैं। इस क्षेत्र के बहुसंख्यक मतदाताओं के बीच जयंत चौधरी की पार्टी अच्छा खासा प्रभाव रखती है. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान इस क्षेत्र से एसपी-आरएलडी गठबंधन को काफी फायदा हुआ. इस स्थिति को देखते हुए, सपा इस गठबंधन को तोड़ने पर विचार नहीं करेगी।
क्यों जरूरी हैं जयंत चौधरी
उत्तर प्रदेश में बीजेपी मजबूत स्थिति में है. यही कारण है कि पार्टी ने इस बार राज्य की सभी 80 लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. इसके अतिरिक्त, भाजपा का ध्यान उन विशिष्ट निर्वाचन क्षेत्रों पर है जहां उन्हें 2019 के चुनावों में हार का सामना करना पड़ा या मामूली जीत हासिल हुई। हाल ही में, पूर्वाचल से ओम प्रकाश राजभर जैसे क्षेत्रीय नेता एनडीए में शामिल हुए, जिससे भाजपा, निषाद पार्टी और सोनेलाल के नेतृत्व वाले अपना दल (एस) के बीच मौजूदा गठबंधन मजबूत हुआ।
ऐसे में बीजेपी की स्थिति काफी मजबूत हो गई है. हालांकि, इसके बावजूद पश्चिमी उत्तर प्रदेश बीजेपी के लिए चुनौती बना हुआ है. इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में जाट आबादी है और जयंत चौधरी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) की यहां अच्छी खासी उपस्थिति है। इस क्षेत्र में लगभग 18% आबादी जाटों की है, जो एक ऐसा समूह है जो सीधे तौर पर चुनाव परिणामों को प्रभावित करता है। ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र में जो भी जाट मतदाताओं का समर्थन हासिल कर लेगा उसकी जीत होने की संभावना है। 2019 के चुनावों में, भाजपा को सात जाट बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा, जबकि उसने मेरठ और मुजफ्फरनगर सहित तीन सीटों पर मामूली अंतर से जीत हासिल की। फिलहाल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी की स्थिति सबसे कमजोर है. अगर आरएलडी उनके साथ गठबंधन करती है तो इस क्षेत्र में बीजेपी की जीत ज्यादा पक्की लगती है.
यही वजह है कि चाहे बीजेपी हो या समाजवादी पार्टी, दोनों ही पार्टियों को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपना पैर जमाने के लिए जयंत चौधरी के सहारे की जरूरत है.