वर्तमान में, 30 मई, यानी मंगलवार को सुलह, समझौते और उसके प्रस्ताव पर चर्चा जारी है। वास्तव में, इस बैठक से कुछ दिन पहले, सचिन पायलट ने गहलोत सरकार को एक अल्टीमेटम दिया था।
राजस्थान राजनीति: राजस्थान में, एक ओर कांग्रेस के आंतरिक विवाद के समय, दूसरी ओर सचिन पायलट के अल्टीमेटम के सम्बंध में भी सवालों का दौर जारी है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय मुख्यालय में, जो दिल्ली में स्थित है, एक बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, महासचिव केसी वेणुगोपाल, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच आयोजित की गई। इस बैठक के बाद, वेणुगोपाल ने मीडिया को बताया कि पार्टी एकजुट होकर आगामी विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ेगी और जीतेगी। हालांकि, उन्होंने इसके पीछे का कारण या समझौते का आधार का खुलासा नहीं किया।
वर्तमान में, सुलह, समझौते और इसके प्रस्ताव के बीच 30 मई, अर्थात मंगलवार को चर्चा जारी है। वास्तविकता में, इस बैठक से कुछ दिन पहले सचिन पायलट ने गहलोत सरकार को एक अल्टीमेटम दिया था। उन्होंने कहा था कि वे आंदोलन जारी रखेंगे अगर उनकी मांगों को पूरा नहीं किया जाता है, जैसे कि वसुंधरा सरकार के काल में हुए दावेदारी घोटाले की जांच और मौजूदा सरकार के दौरान हुए पेपर लीक मामले की पारदर्शिता से जांच शुरू नहीं होती है। हालांकि, उनके अल्टीमेटम के पहले दिन से एक दिन पहले, जिस दिन सोमवार था, दिल्ली में एक बैठक हुई, लेकिन अभी तक स्पष्ट नहीं है कि सचिन पायलट ने उनके आंदोलन के प्रति किस रुख को अपनाया है।
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सुलह के बाद…
हाईकमान द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सुलह हो गई है, तो इसके बावजूद पूर्व डिप्टी सीएम ने अब तक आंदोलन नहीं करने का एलान क्यों नहीं किया है। इसके साथ ही, यह भी चर्चा हो रही है कि अगर सचिन पायलट और अशोक गहलोत मिलकर काम करेंगे तो जिन मुद्दों को पायलट ने अपने उपवास और जनसंघर्ष यात्रा के दौरान उठाया है, उस पर कांग्रेस नेताओं का रुख क्या होगा।
सचिन पायलट के अल्टीमेटम से पहले की बैठक का कहना है कि उसे मनाने के लिए ही कांग्रेस ने यह बैठक आयोजित की थी। पायलट की यात्रा में भारी संख्या के लोगों को लेकर पार्टी चिंतित थी। इसलिए पार्टी चाहती नहीं थी कि पायलट 30 मई को प्रदेश भर में आंदोलन की घोषणा कर दें। पार्टी, पायलट के आंदोलन के पक्ष में भी थी क्योंकि इससे गुटबाजी और बढ़ती और फिर बीजेपी इसे आगामी चुनाव में मुद्दा बना सकती है।
दूसरी ओर, पायलट की ओर से उनके आंदोलन पर अपनी स्थिति को स्पष्ट न करने के बाद एक असमंजसित स्थिति उत्पन्न हो गई है। देखना दिलचस्प होगा कि पायलट क्या पार्टी के प्रस्ताव को स्वीकार करके आगे बढ़ते हैं या गहलोत सरकार से उनकी रार जारी रहेगी।