8 अगस्त 1942 को बॉम्बे के गोवालिया टैंक में स्वतंत्रता सेनानियों के भाषणों का सिलसिला शाम 6 बजे शुरू हुआ और रात 10 बजे तक चला। इस दिन कुल चार लोगों ने भाषण दिया था।
भारत छोड़ो आंदोलन: 7 अगस्त 1942 की शाम को बॉम्बे में कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक हुई, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि अगले दिन बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान (अब अगस्त क्रांति मैदान) में अंग्रेजों से सत्ता हासिल करने के लिए एक विशाल जनसभा आयोजित की जाएगी। अगले दिन शाम को इसी मैदान में महात्मा गांधी ने अपना प्रसिद्ध भाषण दिया।
इस भाषण में उन्होंने “करो या मरो” का नारा दिया और जोरदार आवाज में भीड़ से कहा, “भारत छोड़ो।” इस नारे के साथ ही ब्रिटिश सरकार का अंत करने का संकल्प बुलंद किया गया। यही से भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसे अगस्त क्रांति आंदोलन भी कहा जाता है।
किन लोगों ने दिया था भाषण?
8 अगस्त 1942 को बॉम्बे के गोवालिया टैंक में स्वतंत्रता सेनानियों के भाषणों का सिलसिला शाम 6 बजे शुरू हुआ और रात 10 बजे तक चला। इस दिन कुल चार लोगों ने भाषण दिया, और ये भाषण इतिहास में दर्ज हो गए।
सबसे पहले मौलाना अबुल कलाम आजाद ने भाषण दिया। इसके बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, और अंत में मोहनदास करमचंद गांधी ने जनसभा को संबोधित किया। इसी दिन स्वतंत्रता आंदोलन की ‘ग्रैंड ओल्ड लेडी’ के नाम से मशहूर अरुणा आसफ अली ने गोवालिया टैंक मैदान में भारतीय ध्वज फहराया।
इस आंदोलन के नाम को लेकर काफी चर्चा हुई थी। महात्मा गांधी चाहते थे कि आंदोलन का नाम ऐसा हो जो लोगों के दिलों में बस जाए। इसके लिए कई नाम सुझाए गए, और अंततः ‘भारत छोड़ो’ का नारा यूसुफ मेहरअली ने दिया। यूसुफ ने ही ‘साइमन वापस जाओ’ का नारा भी दिया था।
अंग्रेजों ने भर दिए थे जेल
भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत के साथ ही अंग्रेजी हुकूमत सतर्क हो गई। साल 1942 के अंत तक 60,000 से अधिक लोगों को जेल में डाल दिया गया और सैकड़ों लोग मारे गए। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल सहित कांग्रेस के कई शीर्ष नेताओं को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
भारत छोड़ो आंदोलन क्यों करना पड़ा?
भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ हो रहे आंदोलन को देखते हुए, अंग्रेजी सरकार ने स्टैफोर्ड क्रिप्स को एक नए संविधान, स्वशासन, और भारतीय लोगों की दुविधा को हल करने के लिए एक मिशन के साथ भेजा। यह मिशन विफल रहा क्योंकि ब्रिटिश सरकार भारत को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं बल्कि विभाजन के साथ डोमिनियन स्टेटस देने की पेशकश कर रही थी।
डोमिनियन स्टेटस का मतलब था कि भारत को अपनी सरकार बनाने की अनुमति तो मिलेगी, लेकिन ब्रिटिश सरकार का आधिपत्य स्वीकार करना पड़ेगा। इसके अलावा, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी दूसरे विश्व युद्ध में भारतीय नागरिकों को भेजने के खिलाफ थे।