भारत-पाकिस्तान बंटवारे के लिए लोग अलग-अलग नेताओं को दोषी ठहराते हैं। इस बंटवारे के असली जिम्मेदार को पाकिस्तान ने देश से निकालकर उनकी संपत्ति हड़प ली थी।
भारत-पाकिस्तान विभाजन: भारत 15 अगस्त 1947 को सिर्फ आजाद ही नहीं हुआ था, बल्कि ये वो भी तारीख है, जिसने दुनिया का नक्शा बदल दिया था. यही वो दिन था जब भारत से अलग होकर एक और नया देश पाकिस्तान बनाया गया था. इस भारत-पाकिस्तान बंटवारे के कई गुनहगार हैं. कोई मोहम्मद अली जिन्ना को तो कोई विनायक दामोदर सावरकर को जिम्मेदारी मानता है.
भारत-पाकिस्तान बंटवारे का असली गुनाहगार
भारत-पाकिस्तान बंटवारे के लिए कुछ लोग जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी को दोषी मानते हैं, जबकि दूसरों का मानना है कि अंग्रेज वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन इस बंटवारे के लिए जिम्मेदार थे। लेकिन बंटवारे का असली गुनहगार, जिसने पाकिस्तान के निर्माण का विचार दिया था, वह न तो पाकिस्तान में सम्मानित हुआ और न ही मरने के बाद पाकिस्तान की मिट्टी उसे नसीब हुई। उसकी मृत्यु के समय, किसी को उसकी मौत की खबर भी नहीं हुई और जब उसकी लाश से बदबू आने लगी, तब पता चला कि वह व्यक्ति अब इस दुनिया से चला गया है।
भारत विभाजन का सबसे बड़ा जिम्मेदार मोहम्मद अली जिन्ना को माना जाता है। पाकिस्तान के लिए वे आज भी ‘कायदे-आज़म’ (महान नेता) के रूप में revered हैं। जिन्ना ने जब गुलाम भारत में राजनीति की शुरुआत की, तो उन्हें हिंदू-मुस्लिम मुद्दों से कोई खास लेना-देना नहीं था। वे एक अंग्रेजीदां मुस्लिम थे, जिन्हें न तो नमाज से कोई लगाव था और न ही शराब से परहेज था। उनमें कोई ऐसा गुण नहीं था, जिसकी वजह से उन्हें मुसलमानों का नेता कहा जा सके।
हालांकि, 1933 में तैयार किए गए एक मसौदे के बाद मोहम्मद अली जिन्ना में परिवर्तन आया, और 1940 तक उन्होंने अलग पाकिस्तान की मांग पर अड़ गए। वे इतने ज़िद्दी हो गए कि अगर उन्हें माचिस की डिब्बी के बराबर भी मुस्लिम देश की ज़मीन मिलती, तो वे उसे स्वीकार करने के लिए तैयार थे।
बंटवारे के पीछे किसका था दिमाग
इस पूरे बंटवारे के पीछे एक छात्र का दिमाग था, जिसका नाम रहमत अली था। रहमत अली, जो कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन का छात्र था, ने 28 जनवरी 1933 को एक मसौदा तैयार किया। इस साढ़े चार पन्नों के मसौदे का शीर्षक था “Now or Never: Are we to Live or Perish Forever?” इसमें उसने लिखा कि यदि मुसलमानों को अपना अस्तित्व बचाए रखना है, तो उन्हें हिंदुओं से अलग एक स्वतंत्र देश की आवश्यकता होगी।
रहमत अली ने प्रस्तावित किया कि भारत के उत्तर पश्चिमी हिस्से में जहां मुस्लिम आबादी अधिक है, जैसे पंजाब, कश्मीर, सिंध और बलूचिस्तान, वहाँ एक अलग मुस्लिम देश बनाया जाए, जिसे ‘पाकिस्तान’ नाम दिया जाए। रहमत अली के दिमाग में पाकिस्तान का जो नक्शा था, उसमें आज का गुजरात, राजस्थान का कुछ हिस्सा, बिहार, पूरा पूर्वोत्तर भारत, और आंध्रप्रदेश-तेलंगाना भी शामिल था।
इस समय यह विचार केवल एक ग्रेजुएशन छात्र के मसौदे तक ही सीमित था और कहीं भी अलग पाकिस्तान का कोई औपचारिक उल्लेख नहीं था। इस बीच, मोहम्मद अली जिन्ना ब्रिटेन में थे और वहाँ अपनी वकालत कर रहे थे। भारतीय मुस्लिम, विशेषकर उत्तर प्रदेश और तत्कालीन संयुक्त प्रांत के मुस्लिम, चाहते थे कि जिन्ना ब्रिटेन से भारत लौटें और उनकी नेतृत्व में मुसलमानों की समस्याओं का समाधान करें।
लंदन से भारत लौटे थे जिन्ना
जिन्ना के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक, लियाकत अली खान, ने भी जिन्ना से भारत लौटने का अनुरोध किया। इसके परिणामस्वरूप, 1934 की शुरुआत में जिन्ना ने लंदन में अपना घर बेच दिया, अपनी वकालत छोड़ दी, और स्थायी रूप से भारत लौट आए। भारत लौटने के बाद, जिन्ना की मुलाकात रहमत अली से हुई, जिन्होंने उन्हें अपने अलग पाकिस्तान के प्रस्तावित मसौदे से अवगत कराया।
हालांकि जिन्ना ने इस प्रस्ताव से तुरंत सहमति नहीं जताई, लेकिन इस मुलाकात के दौरान कई मुस्लिम नेताओं ने इसे अपनी राजनीतिक जरूरत के हिसाब से उपयुक्त पाया। धीरे-धीरे, अलग पाकिस्तान की मांग पर जोर बढ़ने लगा और जिन्ना की भी सहमति प्राप्त हो गई। जिन्ना इतने कट्टर हो गए कि उन्होंने किसी भी कीमत पर मुसलमानों के लिए एक अलग देश की आवश्यकता को स्वीकार कर लिया।
इस प्रकार, भारत का विभाजन कर पाकिस्तान बनाया गया, जो रहमत अली के प्रस्तावित पाकिस्तान की तुलना में काफी छोटा था। इस वजह से रहमत अली नाराज हो गए और उन्होंने बंटवारे की प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया। वे इंग्लैंड लौटकर बस गए। डोमिनीक लेपिएर और लैरी कॉलिंस की किताब ‘Freedom at Midnight’ के अनुसार, 14 अगस्त 1947 को जब पाकिस्तान बना, तो रहमत अली अकेले कैम्ब्रिज के हम्बर स्टोन रोड स्थित अपने घर में थे।
पाकिस्तान बनने के एक साल बाद, रहमत अली ने महसूस किया कि जो हो चुका है, उसे बदलना अब संभव नहीं है। उन्होंने अपने इंग्लैंड के सभी संपत्तियां बेचकर लाहौर लौटे और वहाँ पाकिस्तान के कायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्ना और प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के खिलाफ बयानबाजी शुरू कर दी।
रहमत अली को पाकिस्तान से निकाला गया
रहमत अली ने मुस्लिम समुदाय को भड़काना शुरू कर दिया, यह कहकर कि जिन्ना की जिद के कारण पाकिस्तान छोटा रह गया, जबकि वह और बड़ा हो सकता था। उन्होंने जिन्ना को ‘गद्दार-ए-आजम’ तक कह डाला। इस पर प्रतिक्रिया स्वरूप, लियाकत अली खान ने रहमत अली की सारी संपत्ति जब्त करने का आदेश दिया और उन्हें देश निकाला दे दिया।
रहमत अली वापस इंग्लैंड चले गए। उस समय उनके पास पैसे नहीं थे, इसलिए उन्होंने कर्ज लिया। कर्ज न चुका पाने के कारण वे दिवालिया हो गए और गरीबी में जीने लगे। 3 फरवरी 1951 को उनकी मौत हो गई, और यह तब पता चला जब पड़ोसियों को उनके घर से बदबू आने लगी। अंतिम संस्कार के लिए कोई तैयार नहीं था, इसलिए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ने रहमत अली का अंतिम संस्कार किया। उन्हें कैम्ब्रिज के न्यू मार्केट रोड कब्रिस्तान में 20 फरवरी 1951 को दफनाया गया। इससे पहले ही जिन्ना की मौत हो चुकी थी।