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अर्जी लेकर पहुंचा UAPA का आरोपी तो सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया ये अहम फैसला…

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बेंच ने अपने निर्णय में कहा कि यूएपीए के तहत अभियोजन की मंजूरी की वैधता को सुनवाई अदालत के समक्ष शीघ्रता से चुनौती दी जानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (23 सितंबर, 2024) को आतंकवाद विरोधी कानून, गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) पर एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा और सुरक्षा की जानी चाहिए। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि UAPA के तहत अभियोजन की मंजूरी के लिए निर्धारित समयसीमा का कड़ाई से पालन किया जाना आवश्यक है, क्योंकि समयसीमाओं के बिना शक्ति का दुरुपयोग हो सकता है, जो एक लोकतांत्रिक समाज के लिए ठीक नहीं है।

अदालत ने कहा कि यदि किसी आरोपी को लगता है कि अधिकारियों के पास पर्याप्त सबूत नहीं हैं या आरोप तय करते समय विवेक का प्रयोग नहीं किया गया है, तो वह UAPA को चुनौती दे सकता है। हालांकि, इस चुनौती को आरोपी को पहले ही उठाना होगा।

UAPA के नियम 3 और 4 के तहत, संबंधित प्राधिकरण को जांच अधिकारी द्वारा एकत्रित सामग्री के आधार पर सिफारिश करने के लिए सात दिन का समय दिया जाता है, और इसके बाद सरकार को अभियोजन की मंजूरी देने के लिए अतिरिक्त सात दिन की अवधि दी जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में समयसीमा का पालन अत्यंत महत्वपूर्ण है।

जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने यह निर्णय दिया कि यूएपीए के तहत अभियोजन की मंजूरी की वैधता को सुनवाई कोर्ट में शीघ्र चुनौती दी जानी चाहिए। पीठ ने कहा, “कुछ समयसीमा होनी चाहिए, जिसके भीतर सरकार के प्रशासनिक अधिकारी अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकें। बिना समयसीमा के, शक्ति बेलगाम हो जाएगी, और यह एक लोकतांत्रिक समाज के लिए उपयुक्त नहीं है। समयसीमा ऐसे मामलों में संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है और यह निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है।”

कोर्ट ने कहा कि विधायी मंशा स्पष्ट है, और वैधानिक शक्तियों के आधार पर बनाए गए नियम दोनों, जनादेश और समयसीमा, निर्धारित करते हैं। यह निर्णय फुलेश्वर गोप की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया, जिन पर पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (PLFI) का सदस्य होने का आरोप है, जो झारखंड में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से अलग हुआ एक समूह है। फुलेश्वर गोप ने यूएपीए के तहत अभियोजन और उसके बाद की कार्यवाही को स्वीकृति देने के खिलाफ झारखंड हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

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