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इलेक्टोरल बॉन्ड में घोटाले की SC ने खारिज की याचिका…

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इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को चंदा देने की व्यवस्था में दानदाता की पहचान उजागर नहीं होती थी। इस व्यवस्था को अब समाप्त कर दिया गया है।

चुनावी बांड पर सुनवाई: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (2 अगस्त) को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को कॉरपोरेट कंपनियों से मिले चंदे की ‘स्पेशल इंवेस्टिगेटिव टीम’ (एसआईटी) से जांच करवाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि इस समय इस कथित घोटाले की जांच की जरूरत नहीं है। जिनके पास इस मामले में संदेह है, वे कानूनी रास्ता अपना सकते हैं, और अगर समाधान नहीं मिलता है तो वे कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

एनजीओ ‘कॉमन कॉज़’ और ‘सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन’ (सीपीआईएल) की याचिका में राजनीतिक चंदे के जरिए कथित घूस देने का आरोप लगाया गया था। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले चंदे में करोड़ों रुपये का घोटाला हुआ है और सीबीआई या अन्य जांच एजेंसियां इस मामले की जांच नहीं कर रही हैं। उन्होंने कोर्ट से मांग की कि एसआईटी की निगरानी में इस मामले की जांच की जाए।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि वकीलों ने एसआईटी बनाने, गलत तरीके से प्राप्त पैसों को जब्त करने, कंपनियों पर जुर्माना लगाने, और इनकम टैक्स विभाग से 2018 के बाद राजनीतिक पार्टियों का पुनः असेसमेंट करवाने की मांग की थी। सीजेआई ने बताया कि पिछले आदेश के बाद सार्वजनिक हुए इलेक्टोरल बॉंड के आंकड़ों में यह सामने आया है कि कंपनियां राजनीतिक पार्टियों को लाभ पहुँचाने के लिए चंदा दे रही हैं। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि एसआईटी बनाना जरूरी है क्योंकि सरकारी एजेंसियां कुछ नहीं कर रही हैं, और कई मामलों में एजेंसियों के अधिकारी भी चंदा देने के दबाव में शामिल हैं।

सीधे जांच शुरू नहीं करा सकता कोर्ट- सीजेआई

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इलेक्टोरल बॉंड की खरीद संसद द्वारा बनाए गए कानून के तहत हुई थी, और इसी कानून के आधार पर राजनीतिक दलों को चंदा मिला। हालांकि, यह कानून अब रद्द कर दिया गया है। अब यह तय करना है कि इस कानून के तहत प्राप्त चंदे की जांच की आवश्यकता है या नहीं। याचिकाएं यह मानते हुए दाखिल की गई हैं कि चंदे का उद्देश्य राजनीतिक दलों को सरकारी कॉन्ट्रैक्ट्स दिलवाना या सरकार की नीतियों को बदलवाना था, और सरकारी एजेंसियां इस मामले की जांच नहीं कर पाएंगी।

सीजेआई ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि यह सब उनकी धारणा है और अभी ऐसा नहीं लगता कि कोर्ट सीधे जांच शुरू कर दे। जिनके पास संदेह है, वे कानूनी रास्ता अपना सकते हैं, और समाधान न मिलने पर कोर्ट का रुख कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि कानून में जांच के कई विकल्प हैं और मौजूदा स्थिति में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जांच करवाना जल्दबाजी होगी। याचिकाकर्ताओं को अन्य कानूनी विकल्पों पर ध्यान देना चाहिए।

सीजेआई ने यह भी स्पष्ट किया कि कानूनी विकल्प उपलब्ध होने के बावजूद सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करना उचित नहीं है। राजनीतिक पार्टियों से चंदे की राशि जब्त करने या इनकम टैक्स को पुनः असेसमेंट के लिए कहने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की निगरानी में एसआईटी गठन की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि किसी एजेंसी ने जांच नहीं की या उसे बंद कर दिया है, तो शिकायतकर्ता हाई कोर्ट में जा सकते हैं।

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