15 अक्टूबर से देशभर में नवरात्रि का उत्सव मनाया जाएगा। इस अवसर पर, विभिन्न स्थानों पर पंडालों में डांडिया कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, और मंदिरों में देवी मां की पूजा की जाएगी।
उदयपुर समाचार:सितंबर में कृष्ण जन्माष्टमी और उसके बाद गणेश चतुर्थी के उत्सव के दिनों में हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहार मनाए गए। अब, आगामी त्योहार है दीपावली, जो हिंदू धर्म का सबसे बड़ा त्योहार है, लेकिन इससे पहले 15 अक्टूबर से देशभर में नवरात्रि (Navratri 2023) का आयोजन होगा। इस अवसर पर, विभिन्न स्थानों पर पंडालों में डांडिया कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, और मंदिरों में देवी मां की पूजा की जाएगी। भक्त भी मंदिरों में बड़ी संख्या में उपस्थित होंगे। नवरात्रि के दौरान, कई जगहों पर माताजी की मूर्तियों की स्थापना की जाती है, जो इन्हीं प्रतिमाओं को बनाने के लिए खास मिट्टी का उपयोग करते हैं। इन मूर्तियों की विशेषता है कि वे गंगा नदी की मिट्टी से बनाई जाती हैं, और इन मूर्तियों की निर्माण में बंगाल के कलाकारों का हाथ होता है।
3 माह पहले आते हैं कारीगर
बंगाल के कारीगर शंकर ने बताया कि वे उदयपुर में कई दशकों से काम कर रहे हैं, क्योंकि उनका परिवार इस कार्य में जुड़ा हुआ है। नवरात्रि के 3 महीने पहले, उन्होंने अपनी टीम के साथ उदयपुर जाकर काम शुरू किया जाता है, और प्रतिमाएं बनाने की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं। पहले, वे सांचों को बनाते हैं, फिर मिट्टी से प्रतिमाओं का रूप देते हैं। इस प्रक्रिया में, माताजी की, गणेश जी की, और अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं। प्रतिमाओं को वे उन आदेशों के मुताबिक बनाते हैं जो उन्हें मिलते हैं। यह प्रतिमाएं उदयपुर समेत राजस्थान के अन्य जिलों में भेजी जाती हैं।
गंगा की मिट्टी ही क्यों जरूरी है?
इस सवाल पर कारीगर कर ने बताया कि कोलकाता से गंगा नदी की मिट्टी लाई जाती है। इस मिट्टी से केवल प्रतिमा का चेहरा बनाया जाता है, जबकि बाकी हिस्सा स्थानीय मिट्टी का होता है। उन्होंने बताया कि गंगा नदी की मिट्टी का चयन क्योंकि इसमें रेत नहीं होती और यह सॉफ्ट होती है, जिसके कारण इस मिट्टी का उपयोग किया जाता है। वे आगे बताते हैं कि सांचों को बनाने के बाद प्रतिमा का स्वरूप दिया जाता है और फिर सूखने के लिए रख दिया जाता है। जब दरारें आती हैं, तो वे उन जगहों पर गिला कपड़ा रखकर मिट्टी का लेप लगा देते हैं। इससे दरारें ठीक हो जाती हैं। फिर चूनर लगाई जाती है और पेंटिंग की जाती है। ये पूरी तरह से पर्यावरण के प्रति सहयोगी प्रतिमाएं हैं।