मद्रास हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि शरीयत काउंसिल को निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।
एक तरफा तलाक: मद्रास हाई कोर्ट ने मुस्लिम तलाक के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि पत्नी पति द्वारा दिए गए तलाक को नकार रही है, तो तलाक अदालत के माध्यम से ही होना चाहिए। इस फैसले में हाई कोर्ट ने तमिलनाडु की शरीयत काउंसिल द्वारा जारी तलाक प्रमाणपत्र को अवैध घोषित कर दिया। कोर्ट ने पति, जिसने दूसरी शादी कर ली थी, को पहली पत्नी को मुआवजा और गुजारा भत्ता देने का आदेश भी दिया।
हाई कोर्ट के जस्टिस जी आर स्वामीनाथन ने अपने फैसले में कहा कि यदि पति दूसरी शादी करता है, तो पहली पत्नी को उसके साथ रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत पुरुषों को एक से अधिक विवाह की अनुमति है, लेकिन इससे पहली पत्नी को मानसिक पीड़ा होती है, जिसे ‘घरेलू हिंसा कानून’ की धारा 3 के अंतर्गत क्रूरता माना जा सकता है। यदि पहली पत्नी पति के दूसरी शादी से सहमत नहीं है, तो वह धारा 12 के तहत अलग रहने और पति से भरण-पोषण का खर्च पाने की हकदार है।
इस फैसले का संदर्भ एक ऐसे मामले से है, जिसमें पति-पत्नी का विवाह 2010 में हुआ था और 2018 में पत्नी ने ‘घरेलू हिंसा कानून’ के तहत शिकायत दर्ज कराई थी। पति ने दावा किया कि वह तलाक दे चुका है, लेकिन अदालत में तलाक के केवल पहले और दूसरे नोटिस ही प्रस्तुत कर सका, जबकि मुस्लिम पर्सनल लॉ में तीन नोटिस की आवश्यकता होती है।
“शरीयत काउंसिल को फैसले का हक नहीं”
तमिलनाडु मुस्लिम तौहीद जमात की शरीयत काउंसिल के चीफ काज़ी का एक सर्टिफिकेट, जिसमें 29 नवंबर 2017 से तलाक की पुष्टि की गई थी, पति ने कोर्ट में प्रस्तुत किया। इस सर्टिफिकेट का आधार पति के पिता की गवाही थी, जिन्होंने तलाक हो जाने की पुष्टि की। मद्रास हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि तलाक के तीसरे नोटिस की जगह पिता की गवाही से तलाक को वैध नहीं माना जा सकता।
हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि शरीयत काउंसिल या कोई भी निजी संस्था तलाक का प्रमाणपत्र जारी नहीं कर सकती। यदि तलाक को लेकर कोई विवाद है, तो पति को कानूनी अदालत में जाना चाहिए, जहाँ इस बात का निर्णय लिया जाएगा कि वास्तव में तलाक हुआ या नहीं। इस स्थिति में, हाई कोर्ट ने तलाक को मान्यता देने से इनकार किया और निचली अदालत के उस आदेश को कायम रखा जिसमें पति को मानसिक क्रूरता के लिए 5 लाख रुपए मुआवजा और हर महीने 2500 रुपए गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था।