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क्या था 1967 का अजीज बाशा केस का फैसला…

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1967 में अजीज बाशा मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि चूंकि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पर सुप्रीम कोर्ट लाइव अपडेट: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 8 नवंबर 2024 को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर बड़ा फैसला सुनाते हुए 1967 के अजीज बाशा मामले में दिए गए निर्णय को 4-3 के बहुमत से खारिज कर दिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर अंतिम निर्णय लेने की जिम्मेदारी अब तीन जजों की बेंच को सौंप दी है। इस फैसले के बाद लोगों के मन में सवाल है कि आखिर अजीज बाशा मामला क्या था, और सुप्रीम कोर्ट ने इसे क्यों खारिज किया। यहां हम इस फैसले और इसके ऐतिहासिक संदर्भ को विस्तार से समझाते हैं।

क्या था अजीज बाशा जजमेंट?

1967 का अजीज बाशा मामला, “एस. अजीज़ बाशा बनाम भारत संघ” केस था, जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला दिया था। उस समय कोर्ट ने कहा था कि चूंकि AMU एक केंद्रीय अधिनियम के तहत स्थापित विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता।

अदालत ने यह भी कहा कि AMU की स्थापना एक केंद्रीय अधिनियम के माध्यम से की गई थी ताकि उसकी डिग्री को सरकारी मान्यता मिल सके। यह तथ्य दर्शाता है कि यह विश्वविद्यालय पूरी तरह मुस्लिम अल्पसंख्यक के प्रयासों से स्थापित नहीं हुआ था। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि हालांकि अधिनियम मुस्लिम अल्पसंख्यक के प्रयासों का परिणाम हो सकता है, इसका मतलब यह नहीं है कि 1920 के अधिनियम के अंतर्गत विश्वविद्यालय मुस्लिम अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित किया गया था।

तब दिए गए थे ये तर्क

1967 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर सवाल उठाते हुए तर्क दिया था कि इसका गठन और संचालन पूरी तरह मुस्लिम अल्पसंख्यक के प्रयासों पर आधारित नहीं था। उस समय यह भी कहा गया था कि किसी भी संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा नहीं मिल सकता यदि उसकी स्थापना कानून के तहत हुई हो।

सुप्रीम कोर्ट का नया फैसला

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कोई भी धार्मिक समुदाय किसी संस्थान की स्थापना कर सकता है, लेकिन उसका प्रशासन धार्मिक समुदाय के हाथ में नहीं हो सकता। संस्थान की स्थापना सरकारी नियमों के अनुरूप होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी माना कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे का हकदार है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला तीन जजों की नई बेंच को सौंपा है, जो AMU के दर्जे पर अंतिम निर्णय लेगी और अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए मानदंड भी निर्धारित करेगी।

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