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क्या है पुणे के बहिरत परिवार का केस…

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पुणे के पाशन इलाके में, 60 साल पहले सरकार ने एक परिवार से 24 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी। बदले में जो जमीन उन्हें मिली, वह बाद में वन्य क्षेत्र घोषित कर दी गई।

सुप्रीम कोर्ट समाचार: सुप्रीम कोर्ट ने पुणे के एक किसान परिवार को अधिग्रहित जमीन के मुआवजे में हो रही देरी पर फिर से नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार दिल्ली के लुटियंस जोन में किसी से जमीन लेकर उसे मेरठ में जमीन दे सकती है? इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के अधिकारियों को अदालत में बुलाने की चेतावनी दी है। जस्टिस बी आर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, “शायद महाराष्ट्र के मुख्य सचिव को काफी समय से दिल्ली आने का मौका नहीं मिला, उन्हें यहां बुलाना पड़ सकता है।”

इससे पहले 14 अगस्त को कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए सख्त टिप्पणी की थी। तब कोर्ट ने कहा था, “हम आपको लड़की बहन जैसी योजनाओं को लागू करने से रोक सकते हैं। आपके पास ऐसी योजनाओं के लिए धन है, लेकिन इस परिवार को मुआवजा देने के लिए नहीं।” सरकार ने करीब 37 करोड़ रुपये मुआवजा देने की पेशकश की थी, लेकिन 60 साल से जमीन पर सरकार के कब्जे और उसकी वर्तमान कीमत को देखते हुए कोर्ट ने इसे अपर्याप्त माना।

महाराष्ट्र सरकार ने की नई जमीन देने की पेशकश

आज महाराष्ट्र सरकार ने प्रभावित परिवार को नई जमीन देने का प्रस्ताव रखा, लेकिन जज इससे संतुष्ट नहीं दिखे। उन्होंने निर्देश दिया कि संबंधित कलेक्टर परिवार और उसके वकील को प्रस्तावित जमीन दिखाएं। इसके बाद यह तय किया जाएगा कि उन्हें जमीन दी जाएगी या फिर बाजार मूल्य के अनुसार मुआवजा दिया जाएगा।

पुणे के बहिरत परिवार का मामला क्या है?

1961 में पुणे के पाशन इलाके के बहिरत परिवार से 24 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई थी। बदले में जो जमीन उन्हें मिली, उसे बाद में वन क्षेत्र घोषित कर दिया गया। उनकी मूल जमीन भी रक्षा मंत्रालय को सौंप दी गई है। इसी वजह से परिवार लंबे समय से मुआवजे की मांग कर रहा है, लेकिन संबंधित विभाग के अधिकारी इसे लगातार टालते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसी टालमटोल वाले रवैये पर नाराजगी जताई है।

जमीन नहीं मिली तो परिवार से ली गई भूमि पर मौजूद हर ढांचा गिरा देंगे: सुप्रीम कोर्ट

पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट की टिप्पणी के बाद, महाराष्ट्र सरकार ने एक हलफनामा दाखिल कर याचिकाकर्ता को जमीन देने का प्रस्ताव रखा था। हालांकि, इस हलफनामे की भाषा ने जजों को और नाराज कर दिया, जिसमें जनहित और संवैधानिक नैतिकता जैसी बातों का उल्लेख किया गया था।

बेंच ने सख्त लहजे में कहा, “धन्यवाद, आपने हमें संवैधानिक नैतिकता की याद दिलाई। लेकिन अब यह समझ लें कि अगर मामले का संतोषजनक समाधान नहीं निकला, तो हम इस परिवार से ली गई जमीन पर बने हर ढांचे को गिराने और जमीन उन्हें वापस करने का आदेश दे देंगे।”

कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के जवाब को अवमाननापूर्ण माना और एडिशनल चीफ सेक्रेटरी को नोटिस जारी कर इस हलफनामे पर स्पष्टीकरण मांगा है। इस मामले की अगली सुनवाई 9 सितंबर को होगी।

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