देशभर में कोलकाता में महिला डॉक्टर के साथ हुए अत्याचार को लेकर व्यापक नाराजगी है। डॉक्टरों ने अस्पतालों में उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक केंद्रीय कानून बनाने की मांग की है।
कोलकाता बलात्कार-हत्या मामला: कोलकाता के एक अस्पताल में एक महिला डॉक्टर के बुरी तरह घायल होने की वजह से कई डॉक्टर बहुत परेशान हैं। एक हफ़्ते से ज़्यादा समय से पूरे देश में डॉक्टर अपना गुस्सा दिखाने के लिए काम करने से मना कर रहे हैं और इससे लोगों को मेडिकल मदद मिलना मुश्किल हो गया है। डॉक्टर चाहते हैं कि अस्पताल में काम करते समय उन्हें सुरक्षित रखने के लिए ‘केंद्रीय सुरक्षा अधिनियम’ नाम का एक नया नियम बनाया जाए। उन्होंने सरकार से यह नियम बनाने की मांग की है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय डॉक्टरों को वह देने में दिलचस्पी नहीं रखता जो वे चाहते हैं। पूरे देश के डॉक्टर एक नए कानून की मांग कर रहे हैं। क्योंकि उन्हें वह नहीं मिल रहा जो उन्होंने मांगा था, इसलिए वे और भी परेशान हो रहे हैं। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि केंद्रीय सुरक्षा अधिनियम नाम का यह नया कानून क्या है और डॉक्टर इसे इतना क्यों चाहते हैं। साथ ही, आइए जानें कि स्वास्थ्य मंत्रालय डॉक्टरों की मांगों पर सहमत क्यों नहीं होना चाहता।
क्या है सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट?
‘प्रीवेंशन ऑफ वायलेंस अगेंस्ट हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स एंड क्लिनिकल इस्टैबलिशमेंट बिल, 2022’ को आमतौर पर ‘सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट फॉर डॉक्टर्स’ के नाम से जाना जाता है। यह बिल 2022 में लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था और इसका उद्देश्य डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा की परिभाषा स्थापित करना और अपराधियों को दंडित करने के प्रावधान करना है। इस बिल में हिंसा की रोकथाम, दंड का प्रावधान, हिंसा की रिपोर्टिंग, जन जागरूकता और शिकायतों का समाधान करने के उपाय शामिल हैं।
इस प्रस्तावित बिल के दायरे में आने वाले स्वास्थ्यकर्मियों में मेडिकल प्रैक्टिशनर, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, डेंटिस्ट, नर्सिंग प्रोफेशनल्स, मेडिकल और नर्सिंग स्टूडेंट्स, हेल्थ प्रोफेशनल्स, और अस्पतालों के सहायक कर्मचारी शामिल हैं। हालांकि, इस बिल को 2022 में संसद में पेश किया गया था, लेकिन तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि सरकार ने इसे आगे बढ़ाने का निर्णय इसलिए नहीं लिया क्योंकि इसके अधिकांश प्रावधान महामारी रोग (संशोधन) अध्यादेश 2020 में पहले से ही शामिल थे।
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों ने कहा है कि आरजी कर मेडिकल कॉलेज में हुई घटना के आधार पर एक केंद्रीय कानून लाने से बड़ा बदलाव नहीं होगा। इस कॉलेज में महिला डॉक्टर के साथ हुए दुष्कर्म और हत्या के मामले का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि मौजूदा कानूनों के तहत ही अपराध और दुष्कर्म से निपटा जाता है।
सूत्रों ने आगे बताया कि पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, असम, कर्नाटक और केरल समेत 26 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए कानून पारित किए हैं, जहां ये अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती हैं। हालांकि, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) का कहना है कि इसके बावजूद डॉक्टरों पर हमले जारी हैं।
आधिकारिक सूत्रों ने कहा, “आरजी कर मामले के आधार पर एक नया कानून या अध्यादेश लाने से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। यह घटना मरीज और डॉक्टर के बीच हिंसा नहीं थी।” उन्होंने यह भी कहा कि अस्पतालों को किले में नहीं बदला जा सकता क्योंकि वे सार्वजनिक सुविधाएं हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने डॉक्टरों से हड़ताल वापस लेने की अपील की है, क्योंकि इसके कारण मरीजों की देखभाल प्रभावित हो रही है।