आईपीबी (निवेश संवर्धन बोर्ड) अधिनियम के तहत एक नई योजना, विकास और निर्माण समिति की स्थापना की जाएगी, जो राज्य की व्यवस्थाओं को सुधारने पर केंद्रित होगी।
गोवा आईपीबी अधिनियम: गोवा में इन दिनों एक विधेयक को लेकर काफी विवाद उत्पन्न हो गया है। राज्य के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने मानसून सत्र के दौरान आईपीबी (निवेश संवर्धन बोर्ड) अधिनियम पेश किया, जिसके बाद इस पर बहस और असहमति शुरू हो गई है। आलोचकों का कहना है कि यह विधेयक गोवा में लोकतांत्रिक शासन और नौकरशाही ढांचे के लिए खतरा पैदा कर सकता है।
मुख्यमंत्री सावंत द्वारा प्रस्तुत इस विधेयक में योजना, विकास और निर्माण समिति की स्थापना का प्रस्ताव है। इस समिति में टाउन एंड कंट्री प्लानिंग (टीसीपी), पंचायत/नगरपालिका, स्वास्थ्य, अग्नि, वन, तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड), और कलेक्टरों जैसे विभिन्न विभागों के प्रमुख शामिल होंगे। समिति को गोवा भूमि राजस्व संहिता, गोवा टाउन एंड कंट्री प्लानिंग अधिनियम, और गोवा (भूमि विकास और भवन निर्माण विनियमन) अधिनियम जैसे विभिन्न अधिनियमों के तहत आवेदनों पर निर्णय लेने और उनका निपटान करने का व्यापक अधिकार मिलेगा।
इस विधेयक पर क्यों है विवाद?
गोवा में मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत द्वारा पेश किए गए आईपीबी (निवेश संवर्धन बोर्ड) अधिनियम के तहत योजना, विकास और निर्माण समिति की स्थापना पर विवाद की मुख्य वजह इस समिति द्वारा शक्ति के केंद्रीकरण और नियंत्रण व संतुलन के क्षरण की चिंता है। इस समिति के तहत विभिन्न विभागों के प्रमुख जैसे कलेक्टर, मुख्य नगर नियोजक, योजना और विकास प्राधिकरण, ग्राम पंचायत, गोवा नगर पालिका अधिनियम के तहत मुख्य अधिकारी, और पणजी निगम अधिनियम के तहत आयुक्त की भूमिकाएं एक ही स्थान पर समेकित की जा रही हैं।
विपक्ष का ‘मिनी सरकार’ आरोप:
विपक्ष का कहना है कि यह समिति एक तरह से गोवा सरकार के भीतर एक “मिनी सरकार” की तरह कार्य करेगी। समिति द्वारा गोवा सरकार द्वारा अधिसूचित नियमों के पालन के बाद औपचारिक आदेश और अनुमतियों की समीक्षा की जाएगी। इसमें फ्लोर एरिया रेशियो (FAR), फ्लोर स्पेस इंडेक्स (FSI), सेटबैक, रूपांतरण सनद, और तकनीकी मंजूरी जैसे मुद्दों पर विचार शामिल होंगे। इसके साथ ही, समिति द्वारा जारी किए गए लाइसेंस और अनुमतियों के लिए शुल्क भी निर्दिष्ट किए जाएंगे, जिससे शुल्क संग्रह प्रक्रिया केंद्रीकृत हो जाएगी।
यह केंद्रीकरण कई सरकारी निकायों और स्थानीय स्व-सरकारों की भूमिका को कम कर सकता है, जो एक संतुलित और प्रतिनिधि निर्णय लेने की प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण हैं। समिति के भीतर प्राधिकरण का केंद्रीकरण शासन की लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर कर सकता है, क्योंकि यह निर्णय लेने की प्रक्रिया को सीमित कर देता है और कई विभिन्न विभागों की भूमिका को एक ही स्थान पर समेट देता है।
विपक्ष ने अभिव्यक्ति का मुद्दा उठाया
गोवा में विपक्ष के नेता और आरजीपी विधायक वीरेश बोरकर ने आईपीबी (निवेश संवर्धन बोर्ड) अधिनियम पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इससे गोवा के युवाओं को कितनी वास्तविक लाभ मिलेगा। उनका तर्क है कि इस बोर्ड से गोवा के बाहर से आने वाले लोगों को ही रोजगार मिल रहा है, जबकि स्थानीय युवाओं को इस योजना से कोई विशेष फायदा नहीं होगा। बोरकर ने पूछा है कि क्या आईपीबी से गोवा के युवाओं को रोजगार, व्यवसाय में प्रोत्साहन, या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार मिलेगा।
विपक्ष का कहना है कि यह विधेयक निवेश प्रोत्साहन की आड़ में निजी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को आसानी से मंजूरी देने का एक साधन हो सकता है, जिससे संभावित रूप से गोवा के लोकतांत्रिक शासन और नौकरशाही की अखंडता प्रभावित हो सकती है। गोवा फॉरवर्ड पार्टी के विधायक विजय सरदेसाई ने भी इस पर चिंता व्यक्त की है, यह बताते हुए कि आईपीबी अधिनियम के संभावित प्रभाव गोवा में लोकतांत्रिक शासन और प्रशासन की अखंडता पर पड़ सकते हैं।