याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा था कि बड़ी संख्या में लोग दवाओं के दुष्प्रभावों का शिकार होते हैं, और इस कारण डॉक्टरों के लिए यह अनिवार्य होना चाहिए कि वे दवा का पर्चा लिखते समय हर दवा के साइड इफेक्ट्स की जानकारी भी उसमें शामिल करें।
सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को सुनने से इंकार कर दिया है, जिसमें डॉक्टरों के लिए दवाओं के दुष्प्रभावों की जानकारी मरीजों को देना अनिवार्य करने की मांग की गई थी। जस्टिस बी आर गवई और के वी विश्वनाथन की बेंच ने इस प्रस्ताव को अव्यवहारिक बताया।
केरल के एर्नाकुलम निवासी याचिकाकर्ता जैकब वडक्कनचेरी की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट में अपनी बात रखी और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि दुनियाभर में बड़ी संख्या में लोग दवाओं के दुष्प्रभावों का शिकार होते हैं। उनका कहना था कि डॉक्टरों के लिए यह अनिवार्य किया जाना चाहिए कि वे दवा के पर्चे पर हर दवा के साइड इफेक्ट्स भी लिखें।
इस पर जजों ने कहा कि यदि ऐसा किया गया, तो डॉक्टर दिन में 10-15 से ज्यादा मरीजों का इलाज नहीं कर पाएंगे। भूषण ने कहा कि डॉक्टर पहले से छपे हुए फॉर्मेट में दवाओं के साइड इफेक्ट्स की जानकारी दे सकते हैं, लेकिन कोर्ट ने इसे भी व्यवहारिक नहीं माना। जस्टिस गवई ने यह भी कहा कि भारत में स्वास्थ्य केंद्रों में पहले ही भीड़ है, और ऐसे में डॉक्टरों के पास समय नहीं होगा कि वे प्रत्येक मरीज के पर्चे पर दवाओं के साइड इफेक्ट्स लिख सकें।