कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर के रेप और हत्या के मामले ने पूरे देश में व्यापक आक्रोश पैदा कर दिया है। लोग विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शन कर रहे हैं, और इस घटना के बाद महिला सुरक्षा पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं।
कोलकाता बलात्कार-हत्या मामला: 12 साल पहले दिल्ली का निर्भया कांड ने देश को झकझोर कर रख दिया था। इस घटना के बाद देश में कई बदलाव आए—सरकारें बदलीं, कानून में संशोधन हुआ, टेक्नोलॉजी में उन्नति हुई, और महिलाओं की भागीदारी में भी वृद्धि देखी गई। लेकिन, एक चीज़ जो नहीं बदली, वह है देश की बेटियों के साथ होने वाली हिंसा और महिलाओं के प्रति पुरुष प्रधान समाज की सोच।
अब, एक बार फिर पूरे देश में आक्रोश का माहौल है। इस बार दिल्ली की जगह कोलकाता है और निर्भया की जगह एक और साहसी बेटी, अभया है। निर्भया के दोषियों को आठ साल बाद फांसी की सजा मिली थी, और ऐसा माना गया था कि इस सजा के बाद ऐसी घटनाएं नहीं होंगी। लेकिन, ऐसी घटनाएं लगातार हो रही हैं—फर्क बस इतना है कि कुछ घटनाएं ज्यादा भयावह होती हैं। देश कुछ दिनों के लिए जागता है, मीडिया और समाज में मामला गर्म रहता है, और फिर स्थिति वही हो जाती है, जैसी पहले थी।
बदली हुई सोच से आएगा बदलाव
कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज में जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर के साथ हुई रेप और हत्या की घटना ने यह सवाल खड़ा किया है कि निर्भया कांड के बाद रेप के खिलाफ कानून कड़े किए जाने के बावजूद अपराधियों के दिल में ऐसे अपराध करने का डर क्यों नहीं बनता। ऐसी बर्बरता क्यों खत्म नहीं हो रही है? काउंसिल इंडिया की काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ निशि का कहना है कि कानून में बदलाव जरूरी है, लेकिन उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है समाज की सोच में बदलाव, जो अक्सर महिलाओं को हेय दृष्टि से देखती है।
आंकड़े भी एक अलग कहानी बताते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2012 में महिलाओं के खिलाफ 2,44,270 अपराध दर्ज किए गए थे, जिनमें से 24,923 रेप के मामले थे। एक दशक बाद, इन घटनाओं में कमी आने के बजाय वृद्धि हुई है। एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों के अनुसार, 2022 में महिलाओं के खिलाफ 4,45,256 अपराध दर्ज हुए, जिनमें से 31,516 रेप की घटनाएं थीं।
लड़कियों को देखना होगा सम्मान की नजर से
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ निशि ने कहा कि निर्भया कांड के बाद केवल उसी मामले में आरोपियों को फांसी की सजा मिली, जबकि कई अन्य मामलों में दोषियों को या तो सजा नहीं मिली या फिर अपेक्षित सजा नहीं दी गई। उन्होंने समाज की सोच में बदलाव की आवश्यकता पर जोर दिया, यह मानते हुए कि कानून से ज्यादा प्रभावी होगा कि लड़कों में बढ़ती उम्र में लड़कियों के प्रति सम्मान पैदा किया जाए। इसमें परिवार और समाज की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
निशि ने बताया कि किसी भी व्यक्ति के मानसिक विकास में उसका पारिवारिक माहौल महत्वपूर्ण होता है। यह निर्भर करता है कि वह किस माहौल में रह रहा है और उसके मित्रों का सर्कल कैसा है। उदाहरण के तौर पर, अगर बचपन में एक लड़का अपनी बहन या महिला मित्र को मारता है, तो अगर उस समय उसे रोक दिया जाए और समझाया जाए कि वह लड़की पर हाथ नहीं उठा सकता, तो इससे लड़के के मन में डर और सम्मान का भाव पैदा होता है। ऐसे छोटे प्रयासों का दीर्घकालिक असर होता है। अगर बचपन से ही इन्हें रोका न जाए, तो धीरे-धीरे मन से डर खत्म हो जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि मेल डॉमिनेंट सोसायटी में, अगर बच्चा घर में देखता है कि परिवार के अन्य सदस्य मां के साथ सही तरीके से व्यवहार नहीं कर रहे हैं, तो इसका भी नकारात्मक असर पड़ता है।
फिल्मों का ही पड़ता है असर
निशि ने कहा कि फिल्मों का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्में जैसे “कबीर सिंह” और “एनीमल” में महिलाओं के प्रति सम्मान की कमी दिखाई गई और उन्हें हिंसा का सामना करना पड़ा। इस प्रकार की फिल्मों से मानसिक विकास की दिशा प्रभावित हो सकती है, और बॉलीवुड की भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका है।
उन्होंने किशोरावस्था में दोस्तों के प्रभाव पर जोर देते हुए कहा कि बच्चे अक्सर मां-पिता से परे जाकर अपने दोस्तों और ग्रुप्स के प्रभाव में आते हैं। इस समय अभिभावकों को दोस्त की तरह बातचीत करनी चाहिए और प्यार से समझाने की कोशिश करनी चाहिए।
निशि ने स्कूलों में सेक्स एजुकेशन की भी आवश्यकता पर बल दिया, ताकि लड़के शारीरिक अंतर के बावजूद लड़कियों को समान मान-सम्मान दें। उन्होंने कहा कि स्कूलों में सेक्स एजुकेशन को जरूरी बनाना चाहिए और इस पर बने टैबू को समाप्त करना चाहिए। बच्चों को यह समझाया जाना चाहिए कि लड़का और लड़की के बीच केवल शारीरिक अंतर है, और महिला किसी अलग दुनिया से नहीं आई है।
उन्होंने कोलकाता की अभया मामले के अपराधियों को जल्द और कड़ी सजा देने की जरूरत पर भी बल दिया। मीडिया में इस प्रकार की घटनाओं की प्रमुखता से कवरेज पर उन्होंने कहा कि इससे अपराधियों को रोकने में मदद मिल सकती है, क्योंकि जब कोई अपराध छुपा हुआ नहीं रहता और मीडिया में आता है, तो अपराध करने वाले लोग रुक सकते हैं।