नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) ने बिहार में 12 सीटों पर विजय हासिल की है। नीतीश कुमार ने भारतीय राष्ट्रीय जनता दल (यूनाइटेड) की बैठक में भी भाग लिया था।
लोकसभा चुनाव परिणाम 2024: नीतीश कुमार फिर से राजनीति की चर्चा का विषय बन गए हैं। उनकी राजनीति की खत्मी का कहना जा रहा था, लेकिन जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आए, तो वे फिर से सामने आए। यहां तक कि वे अब एनडीए का हिस्सा हैं। मगर उनके पार्टी बदलने की चर्चा अभी भी है। यहां तक कि एनडीए ने वीडियो और तस्वीरों को जारी करके इन चर्चाओं को रोका है।
नीतीश के पार्टी बदलने की चर्चा तब थी जब एनडीए के साथी दलों के साथ वीडियो और तस्वीरें जारी की गईं थीं। उनमें नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी केवल एक कुर्सी की दूरी पर दिखे थे। यह तस्वीरें दिखाती थीं कि एनडीए अब मजबूत है और वे अपने बल पर पांच साल की सरकार चला सकते हैं। लेकिन जब इंडिया अलायंस की मीटिंग शुरू हुई, तो तेजस्वी यादव ने फिर से नीतीश को याद किया।
नीतीश के साथ दिखने पर तेजस्वी यादव ने क्या कहा?
बुधवार को दिल्ली में एनडीए और इंडिया की बैठक हुई। पटना से दिल्ली के लिए उड़ान भरने पर नीतीश और तेजस्वी एक साथ दिखे। जब मीडिया ने बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव से सवाल पूछा, तो उन्होंने कहा, “सलाम-दुआ हुआ, मेरी सीट पीछे थी, लेकिन फिर मुझे आगे बुलाया गया। यह सभी बातें समय पर होती हैं, इन सभी बातों को बाहर नहीं बताया जाता है।”
इसी साल, नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव का साथ छोड़कर बीजेपी के साथ जाया। वह भी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले, लेकिन उस समय भी तेजस्वी ने नीतीश कुमार के बारे में कुछ नहीं कहा था। चाहे बीजेपी हो या तेजस्वी, दोनों ही राजनीति के मामले में नीतीश के प्रभाव की महत्वाकांक्षा करते हैं।
दुश्मनी भुला लालू संग आए, फिर छोड़ा साथ
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 2015 में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के साथ 20 साल पुरानी दुश्मनी को भूलकर दोस्ती की शुरुआत की। बिहार में हाशिए पर बैठे लालू को नीतीश ने उसकी सियासत को बहुत आगे बढ़ाने में मदद की। विधानसभा चुनाव में जीत के बाद बिहार में लालू-नीतीश-कांग्रेस की सरकार बनी। लेकिन 2017 में नीतीश करप्शन के मुद्दे पर पलट गए और बीजेपी के साथ जुड़ गए।
2019 के लोकसभा चुनाव में नीतीश और बीजेपी ने मिलकर चुनाव लड़ा। बिहार की 40 सीटों में से 39 सीटें अलायंस ने जीती। इसमें एलजेपी भी शामिल थी। लेकिन जब सरकार बनने का मौका आया, तो शपथ ग्रहण के दिन नीतीश ने फैसला पलट दिया। मोदी 2.0 के शपथ-ग्रहण कार्यक्रम के दिन, शाम को नीतीश कुमार ने घोषित किया कि उनकी पार्टी सरकार में शामिल नहीं होगी।
पटना से दिल्ली तक के राजनीतिक कॉरिडोर में चर्चा होती रही कि नीतीश कुमार दो मंत्रियों के पद की मांग कर रहे थे, लेकिन बीजेपी राजी नहीं हुई। गठबंधन धर्म का पालन किसने किया, किसने नहीं, यह बाहर आया नहीं। मगर यह स्पष्ट है कि 2019 में मोदी सरकार प्रचंड बहुमत से बनी थी और उस समय साथी दलों को कैबिनेट में जगह मांगने की बार्गेनिंग पावर कम थी।
2020 में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी और जेडीयू ने मिलकर चुनाव लड़ा, और नीतीश कुमार ने चेहरा दिखाया। इस चुनाव से ही बीजेपी और जेडीयू के बीच अड़तीं शुरू हो गईं। इस दौरान चिराग पासवान अलग हो गए और अपने पार्टी को लेकर अलग-अलग मुद्दों पर बढ़ते कदम उठाए। आरोप लगा कि उन्हें नीतीश कुमार के उम्मीदवारों के खिलाफ उतारा गया ताकि उन्हें कमजोर किया जा सके। नतीजे में नीतीश कुमार कमजोर हो गए, लेकिन बीजेपी ने उन्हें ही मुख्यमंत्री पद का प्रारंभिक वादा किया और उन्हें मुख्यमंत्री बनाया। नीतीश सीएम बन गए, लेकिन उनका प्रदर्शन अस्थिर हो गया। अंततः, उन्होंने 2022 में NDA के साथ चलते हुए सरकार छोड़कर आरजेडी के साथ सरकार बनाई। आरजेडी ने नीतीश को साथ लिया, लेकिन इस
मोदी को रोकने के लिए बनाया इंडिया गठबंधन
राजद के साथ गठबंधन करने के बाद, नीतीश कुमार “मोदी हटाओ” आंदोलन में शामिल हो गए। वह इंडिया अलायंस में एक प्रमुख व्यक्ति बन गए और सभी को एक साथ लाए। एक समय उस तस्वीर की काफी चर्चा हुई थी जिसमें बैकग्राउंड में नीतीश कुमार को लाल किले के साथ दिखाया गया था. समर्थक उन्हें ऐसे नेता के तौर पर पेश करने लगे जो मोदी का मुकाबला कर सकता है. यह चर्चा अब भी यदा-कदा उठती रहती है।
हालाँकि, नीतीश कुमार का प्रधानमंत्री बनने का सपना तब टूट गया जब इंडिया एलायंस की बैठक में उन्हें संयोजक नियुक्त करने पर कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ। तमाम कोशिशों के बावजूद नीतीश का नाम अन्य नेताओं के प्रस्तावित नामों के पक्ष में फिसलता रहा. नीतीश ने एक बार फिर अपना रुख और रणनीति बदली.
चुनाव से पहले नीतीश कुमार ने एक बार फिर अपना रुख बदल लिया है.
नीतीश की एनडीए गठबंधन में वापसी की काफी आलोचना हुई थी. राजनीतिक हलकों में यह कहा जाने लगा कि नीतीश कुमार की अब कोई खास अहमियत नहीं रह गयी है. इसका कारण यह था कि पहले नीतीश अपने डिप्टी चुनते थे, लेकिन इस बार बीजेपी ने नीतीश कुमार के खिलाफ सुशील मोदी और विजय सिन्हा जैसे आक्रामक नेताओं को उपमुख्यमंत्री बनाया. इस मामले पर नीतीश कुमार चुप रहे.
इस बीच, बिहार बीजेपी इकाई ने 2024 का चुनाव अकेले लड़ने की तैयारी कर ली है. हालाँकि, जब दिल्ली से नीतीश के साथ गठबंधन करने का आदेश आया, तो स्थानीय भाजपा इकाई की ओर से कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं आई। नतीजों को देखकर लगता है कि बीजेपी का फैसला सही था, क्योंकि यूपी, राजस्थान और बंगाल जैसे राज्यों में नुकसान उठाना पड़ा. लेकिन बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला एनडीए 30 सीटों तक पहुंच गया.
नीतीश कुमार क्यों बने किंगमेकर?
नीतीश कुमार का राजनीतिक कद एक बार फिर बढ़ गया है. वजह ये है कि वो राजनीतिक हवा का रुख भांपने में माहिर हैं. जब भी उन्होंने अपना रुख बदला है, वह सत्ता के केंद्र में ही रहे हैं. जब-जब कांग्रेस-आरजेडी के साथ गए, सीएम बने. इसी तरह एनडीए में रहते हुए भी उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी दी गई. वह समझता है कि कब किसके साथ जाना है. आने वाले वर्षों में भी नीतीश कुमार इसी तरह राजनीति में प्रासंगिक बने रहेंगे.