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पूर्व रॉ चीफ का कंधार हाईजैक को लेकर नया खुलासा…

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अमरजीत सिंह दुलत ने कहा कि उस समय अधिकारियों के लिए स्थिति काफी कठिन थी, क्योंकि भारत के तालिबान से कोई रिश्ते नहीं थे और पाकिस्तान के साथ भी संबंध काफी खराब चल रहे थे।

नेटफ्लिक्स की वेब-सीरीज IC184: द कंधार हाईजैक की रिलीज के बाद 1999 की कंधार हाईजैक घटना को लेकर कई नए खुलासे सामने आ रहे हैं। खुफिया एजेंसी रॉ (R&AW) के तत्कालीन प्रमुख अमरजीत सिंह दुलत ने हाल ही में लाल कृष्ण आडवाणी और अजित डोभाल के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी साझा की है।

अमरजीत सिंह दुलत ने बताया कि उस समय लाल कृष्ण आडवाणी, जो गृहमंत्री थे, तीनों आतंकियों को रिहा करने के फैसले से बहुत अफसोसित थे। उन्होंने यह भी कहा कि इस फैसले से अजित डोभाल को भी दुख हुआ होगा, क्योंकि उनकी सोच आडवाणी की तरह ही थी। दुलत ने यह भी खुलासा किया कि कंधार से अजीत डोभाल ने फोन करके सूचित किया था कि वह वहां सुरक्षित नहीं हैं और स्थिति तेजी से बिगड़ रही है।

दुलत ने यह भी बताया कि हाईजैकर्स की डिमांड पर बातचीत शुरू होने के छह दिन बाद अजित डोभाल ने उन्हें सूचित किया था कि वह खुद और हाईजैकर्स दोनों सुरक्षित नहीं हैं और स्थिति हाथ से निकलती जा रही है। अमरजीत सिंह ने कहा कि उस समय अधिकारियों की प्राथमिकता हाईजैकर्स की डिमांड को कम करना थी, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण मांग मसूद अजहर की रिहाई थी, जो शुरुआत से ही ज्ञात थी।

अमरजीत सिंह दुलत ने कहा कि अजित डोभाल को मसूद अजहर और अन्य आतंकवादियों को छोड़ने पर अफसोस हुआ होगा, क्योंकि वह लाल कृष्ण आडवाणी की तरह सोचते थे। दुलत ने यह टिप्पणी की कि जैसे आडवाणी ने इस फैसले से अफसोस महसूस किया होगा, वैसा ही अजित डोभाल ने भी महसूस किया होगा।

जब एएस दुलत से पूछा गया कि क्या आडवाणी हाईजैकर्स की डिमांड मानने के खिलाफ थे और मसूद अजहर समेत तीन खतरनाक आतंकवादियों को छोड़ना नहीं चाहते थे, तो उन्होंने जवाब दिया, “हां, लेकिन उस समय स्थिति बहुत जटिल थी। आपको एक विशेष काम सौंपा गया था, जो आपको पूरा करना था।” दुलत ने यह भी कहा कि अजित डोभाल एक पेशेवर अधिकारी हैं और उन्हें इस स्थिति की गंभीरता को समझने में कोई संकोच नहीं था।

दुलत ने आगे बताया कि चार प्रमुख अधिकारियों को अफगानिस्तान में तालिबान के साथ बातचीत करने के लिए भेजा गया था, जिसमें अजित डोभाल, आईबी के नेहचल संधु, रॉ के सीडी सहाय, और आनंद अर्नी शामिल थे। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि उस समय अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था और भारत के तालिबान के साथ कोई संबंध नहीं थे, साथ ही पाकिस्तान के साथ भी रिश्ते खराब थे। ऐसे में अधिकारियों के लिए स्थिति अत्यंत कठिन थी।

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