राजस्थान के जनजाति अंचल के बांसवाड़ा जिले में स्थित आनंदपुरी पंचायत समिति के टामटिया गांव में महिलाएं पुरुषों की वेशभूषा में धाड़ निकालकर अच्छी बारिश की कामना करती हुई नजर आई है।
बांसवाड़ा समाचार: राजस्थान के उदयपुर जनजातीय बहुल क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है। इस कारण, यहां विभिन्न प्रकार की रोचक और आश्चर्यजनक प्रथाएं हैं, जो पग-पग पर दिखाई देती हैं। यहां के लोग इन प्रथाओं को सैकड़ों वर्षों से आगे बढ़ाते आ रहे हैं। इसी प्रकार की एक विशेष प्रथा बांसवाड़ा जिले में प्रचलित है, जहां सैकड़ों महिलाएं पुरुषों की पोशाक पहनकर निकलती हैं। इस प्रथा की विशेषता यह है कि उनके हाथों में धारदार हथियार होते हैं।
इस प्रथा के अनुसार, सभी महिलाएं और युवतियां एक साथ गैरों के रूप में निकलती हैं। अब सवाल यह उठता है कि इस प्रथा को निभाने के पीछे क्या कारण है। यह एक समाजिक और सांस्कृतिक परंपरा है जो समाज में सामाजिक समृद्धि, समृद्धि और समरसता का संकेत मानी जाती है। इसके माध्यम से लोग एक-दूसरे के साथ संवाद करते हैं, साथी बनते हैं और आपसी समरसता की भावना को मजबूती से बनाए रखते हैं। इसके अलावा, धारदार हथियार पहनने से वे अपनी सुरक्षा की भावना और संवाद का संदेश प्रकट करती हैं। यह प्रथा उनकी शक्ति और साहस की प्रतीक होती है, जो उन्हें सामाजिक और सांस्कृतिक मानवता के मूल्यों के साथ जुड़ती है।
100 साल से निभा रहे है यह प्रथा
वास्तव में, सुबह बड़ी संख्या में बांसवाड़ा जिले के टामटिया गांव की महिलाएं और युवतियां धोती, कुर्ता, सिर पर पगड़ी पहनकर हाथों में हथियार लिए चौराहों पर गैर नृत्य भी किया। इन महिलाओं का कहना है कि इस प्रथा को ‘धाड़ प्रथा’ कहा जाता है और इसका निर्वहन पिछले 100 साल से भी ज्यादा समय से हो रहा है। इन महिलाओं का उद्देश्य इंद्र देव से अच्छी बारिश की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करना है, ताकि फसलों का अच्छा प्रदान हो सके और पानी की कमी न हो। इस साल अगस्त में बहुत कम बारिश हो रही है, इसलिए ये महिलाएं इस प्रथा के निर्वहन के लिए निकल रही हैं, ताकि आगामी समय में क्षेत्र में अच्छी बारिश हो सके।
धाड़ प्रथा के दौरान नहीं दिखते पुरुष
इस प्रथा में एक और खास बात है, जिसमें पुरुषों का कोई भूमिका नहीं होती है। जिस दिन धाड़ प्रथा का निर्वहन होता है, उस दिन पुरुषों का प्रदर्शन नहीं होता। वहां से जहां महिलाएं निकलती हैं, पुरुषों का दिखाई नहीं देता। इसका कारण यह है कि इस प्रथा को निर्वहन करते समय, अगर सामने पुरुष दिख जाते हैं, तो इसे अपशकुन माना जाता है।