एस. जयशंकर ने कहा कि जनजातीय समुदायों द्वारा बनाई गई कलाकृतियों को विदेश में लोगों को उपहार के रूप में प्रस्तुत करना उनके लिए एक विदेश मंत्री के रूप में गर्व की बात होगी।
विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने जैव विविधता की रक्षा में जनजातीय समुदायों की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि भारत की विकास यात्रा पर्यावरण संरक्षण के साथ गहराई से जुड़ी हुई है। उन्होंने 17 अक्टूबर 2024 को ‘इंडिया हैबिटेट सेंटर’ में आयोजित जनजातीय कला प्रदर्शनी – ‘साइलेंट कन्वर्सेशन: फ्रॉम द मार्जिन्स टू द सेंटर’ के उद्घाटन कार्यक्रम में यह बातें कही। इस मौके पर उन्होंने 1973 में शुरू किए गए ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ की भी प्रशंसा की।
डॉ. जयशंकर ने कहा, “यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है, यह सफलता का एक शानदार उदाहरण है। इसके लिए जनजातीय समुदाय को बहुत बड़ा श्रेय मिलता है।” उन्होंने कहा कि यह कला न केवल रचनात्मकता का प्रदर्शन करती है, बल्कि यह एक गहरा संदेश भी देती है, जो प्रकृति और मानवता के बीच की खाई को पाटता है, बाघों से लेकर जनजातीय समुदायों तक।
उन्होंने आगे कहा कि यह प्रदर्शनी दर्शाती है कि लोग प्रकृति के साथ पूर्ण सामंजस्य स्थापित करके रह सकते हैं, और यह इस बात की कहानी है कि कैसे जनजातीय समुदाय सहस्राब्दियों से प्रकृति के साथ एक स्थायी रिश्ता बनाए रखे हुए हैं।
डॉ. जयशंकर ने अपने संबोधन में ‘अंत्योदय’ के दर्शन की चर्चा की, जिसका अर्थ है “किसी को पीछे न छोड़ना।” उन्होंने कहा, “यह सिर्फ एक नीति नहीं है, बल्कि हमारी सरकार की आत्मा और मार्गदर्शक सिद्धांत है।”
उन्होंने यह भी कहा, “हम सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास, सबका विश्वास सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिसमें हाशिए पर पड़े समुदाय, विशेषकर हमारी जनजातीय आबादी के उत्थान पर विशेष ध्यान दिया गया है। लक्षित नीतियों के माध्यम से हम अवसर पैदा कर रहे हैं और अपने जनजातीय युवाओं के लिए स्थायी आजीविका के साथ शिक्षा को बढ़ावा दे रहे हैं।”
उन्होंने बताया कि आकांक्षी ब्लॉक कार्यक्रम ने उन क्षेत्रों में रहने वाले जनजातीय समुदायों के जीवन को आसान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विदेश मंत्री ने कहा, “भारत की विकास यात्रा पर्यावरण संरक्षण के साथ गहराई से जुड़ी हुई है।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बाघों को कला में प्रदर्शित किया गया है और कुछ समुदाय उनकी पूजा भी करते हैं। एस. जयशंकर ने कहा कि जनजातीय लोगों और पर्यावरण के बीच एक भावनात्मक संबंध है, और इस प्रदर्शनी को देखने के बाद धरती माता का भाव मन में उत्पन्न होता है।
उन्होंने आगे कहा कि जनजातीय समुदायों द्वारा बनाई गई कलाकृतियों को विदेश में उपहार के रूप में प्रस्तुत करना उनके लिए गर्व की बात होगी। बाद में, उन्होंने प्रदर्शनी की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर भी साझा कीं।
उन्होंने लिखा, “आज नई दिल्ली में जनजातीय कला प्रदर्शनी ‘साइलेंट कन्वर्सेशन: फ्रॉम द मार्जिन्स टू द सेंटर’ का उद्घाटन करते हुए मुझे बहुत खुशी हुई। यह प्रदर्शनी पर्यावरण संरक्षण, सततता और प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहने के हमारे सिद्धांतों को दर्शाती है। मैं हमारे प्रतिभाशाली जनजातीय कलाकारों के असाधारण काम की सराहना करता हूं। जरूर जाएं और उनका समर्थन करें।”
यह प्रदर्शनी संकला फाउंडेशन ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के सहयोग से आयोजित की, जिसमें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस ने भी मदद की।