पार्टियों ने लोकसभा चुनाव की तैयारियों की शुरुआत कर दी है, जहां वे नए समीकरण और गठबंधन की संभावनाओं पर काम कर रहे हैं। हालांकि, इस के बीच, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने कुछ ऐसे फैसले लिए हैं जो गठबंधन को क्षति पहुंचा सकते हैं।
आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले देश में एक ओर गठबंधन बनाने की तैयारी शुरू हो गई है, जहां कई दल साथ आने के लिए तैयार हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश में स्थिति बिलकुल विपरीत है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के खिलाफ बड़ी बयानबाज़ी की है। सपा के नेता अखिलेश यादव ने भी कई मौकों पर संकेत दिए हैं कि अगर कांग्रेस के साथ गठबंधन होता है तो राज्य में कुछ ही सीटें उसे दी जाएंगी। उनका दावा है कि राज्य में कांग्रेस का जनाधार सिमट चुका है। इसके अलावा, यह देखने वाली बात होगी कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खिलाफ गठबंधन में कांग्रेस कितनी कुर्बानी के लिए तैयार होती है। हालांकि, उत्तर प्रदेश में सिर्फ सपा और कांग्रेस के गठबंधन से ही सब समस्याएं हल नहीं हो जाएंगी।
2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणाम दिखा रहे हैं कि राज्य में बसपा के बिना कोई गठबंधन अपना पूर्ण आकार नहीं लेता है। बाद में हुए चुनावों में भी यह साबित होता है कि बसपा को विधानसभा चुनावों से लेकर लोकसभा चुनावों तक मुंह की खानी पड़ी है। यह सत्य है कि बसपा का अपना वोट बैंक है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में, जब बसपा के खाते में केवल शून्य सीटें थीं, तब भी पार्टी को 19.77% वोट प्राप्त हुए थे। साल 2019 में, जब बसपा ने सपा के साथ गठबंधन किया, तो उन्हें केवल 19.43% मतों पर ही 10 सांसदों की सीटें मिलीं। यह संख्याएँ दिखा रही हैं कि बसपा को अपने वोटर बेस को संघटित रखने में समर्थन मिलता है, लेकिन चुनावी गठबंधनों में उनकी जीत में कुछ कमजोरियाँ भी नजर आती हैं।
दलितों की 20% और मुस्लिमों की 18% आबादी राज्य में है, और बसपा को दलित वोटबैंक और सपा और बसपा को मुस्लिम वोट का हिस्सा माना जाता है। आपके बयान के अनुसार, बीजेपी ने दलित वोटबैंक में सेंध लगा दी है और सपा और बसपा का हिस्सा मुस्लिम वोट पर साझा है। इस प्रकार, राज्य में किसी गठबंधन के बिना कारगर नहीं हो सकता है।
मायावती के कुछ फैसलों से यह संकेत मिल रहा है कि वह और उनकी पार्टी किसी संभावित गठबंधन का हिस्सा नहीं होंगे। यहां तक कि उनकी प्रतिक्रिया से यह भी साबित हो रहा है कि वे गठबंधन में शामिल होने के लिए इच्छुक नहीं हैं, जैसे कि नई संसद के उद्घाटन के फैसले और हाल ही में हुए विधान परिषद के उपचुनाव पर सपा पर लगे आरोपों के मामले में।