यूपी नगर निकाय चुनाव में, बसपा पार्टी को इतना नुकसान हुआ कि प्रत्याशी हशमत मलिक की जमानत रद्द कर दी गई है. बीएसपी को केवल 54,000 वोट मिले हैं. इस चुनाव में एआईएमआईएम दूसरे स्थान पर रही है.
यूपी समाचार: उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनाव में, मेरठ में एआईएमआईएम पार्टी ने बसपा को चौथे स्थान पर पहुंचाकर उनका रास्ता रोक दिया है. इससे बीएसपी की सुप्रीमो मायावती बहुत नाराजगी महसूस कर रही हैं और उन्होंने अपने पूर्व मंत्री को पार्टी से निकाल दिया है. 18 मई को लखनऊ में आयोजित समीक्षा बैठक से पहले, यह कदम मायावती की ओर से लिया गया है और इससे स्पष्ट यह संदेश मिलता है कि लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी.
मायावती 18 मई को लखनऊ में निकाय चुनाव के नतीजों की समीक्षा करने के लिए जा रही हैं। इससे पहले मेरठ मेयर सीट के नतीजों से नाराज मायावती ने पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री और पूर्व मेरठ मंडल प्रभारी प्रशांत गौतम को पार्टी से निकास कर दिया है। उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों और अनुशासनहीनता का दोषी माना गया है। मायावती की इस कार्रवाई से साफ है कि लखनऊ की बैठक से पहले यह एक बड़ा कदम है जो पार्टी के नेताओं के लिए संदेश और संकेत दोनों है, जो पार्टी में गंभीरता से काम नहीं कर रहे हैं। प्रशांत गौतम के निकासन से मेरठ ही नहीं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसपा के समर्थकों में खलबली मची है कि अगली बार किसी का भी नंबर आ सकता है। हालांकि, पार्टी के नेताओं ने इस निकासन पर स्पष्ट रूप से नहीं बोला है, लेकिन उन्होंने यह जरूर कहा है कि 2024 में मजबूती से लड़ेंगे।
2017 में बीएसपी के टिकट पर सुनीता वर्मा बनीं थी मेयर
प्रशांत गौतम का निष्कासन उनके बीएसपी के संगठनिक कार्य में उपेक्षा और दलित-मुस्लिम गठबंधन के साथ तनाव के कारण किया गया। साल 2017 के निकाय चुनाव में, जहां सुनीता वर्मा ने बीएसपी के टिकट से मेयर का पद प्राप्त किया था, बसपा को करीब 2 लाख 38 हजार वोट मिले थे और दलित-मुस्लिम गठबंधन ने पार्टी को समर्थन दिया था।
हालांकि, 2023 में बसपा की जनप्रतिष्ठा कमजोर हो गई और दलित-मुस्लिम गठबंधन टूट गया, जिससे पार्टी को जीत की संभावना कम हो गई। इस दौरान बीएसपी को केवल 54 हजार वोट मिले और वे पहले से चौथे स्थान पर पहुंच गए। इस परिस्थिति में, प्रशांत गौतम को उनकी कार्यशीलता और पार्टी के हित में काम करने का आरोप लगाया गया और उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया।
दूसरे स्थान पर रही एआईएमआईएम
साल 2017 में, बीएसपी को 25 नगर निगम पार्षदों की सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन इस बार यह संख्या केवल 6 तक ही सीमित रह गई। इसके अलावा, मायावती के गुस्से का कारण यह भी है कि ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम दूसरे स्थान पर पहुंच गई है। इसका मतलब है कि ओवैसी ने मेरठ में मजबूती से मायावती की गढ़बंधन को रोक दिया है और 1 लाख 28 हजार वोटों के साथ सभी को चौंका दिया है। एआईएमआईएम ने शायद जीत नहीं पाई हो, लेकिन अपनी हार में भी भविष्य की जीत की तलाश कर रही है।
बीएसपी कार्यकर्ताओं को खल रही ये कमी
वह प्रशांत गौतम, जिन्हें बीएसपी ने पार्टी से निष्कासित किया है, ने सोमवार को ही अपना त्यागपत्र मायावती को भेज दिया था। उसमें पार्टी के पदाधिकारियों की कार्यशैली और मायावती के प्रचार-रैली ने कार्यकर्ताओं के मनोबल कम करने की बात कही गई थी। हालांकि, उन्होंने कैमरे पर बोलने से बचा रहा है। यह स्पष्ट है कि मायावती के प्रचार अभियान की वजह से बीएसपी के सभी कार्यकर्ताओं को दूरी महसूस हो रही है।
मेरठ में दलितों का बीएसपी से हुआ मोह भंग!
मायावती के मैदान में आने की बातें बहुत चर्चा में थीं। कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों ने उसे मांग भी की, लेकिन मायावती ने सियासी मैदान में दिखाई नहीं दी। शायद इसके कारण बसपा ने मेरठ के साथ ही अलीगढ़ मेयर सीट भी हार दी। पूर्व मेयर और दलितों के प्रमुख नेता, पूर्व विधायक योगेश वर्मा, अब सपा में शामिल हो गए हैं। इसके कारण भी दलितों का बीएसपी के प्रति मेरठ में आत्मविश्वास कम हो रहा है।
मायावती ने क्यों बनाई दूरी?
सवाल उठ रहा है कि जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पूर्व सीएम अखिलेश यादव निकाय चुनाव में सियासी मैदान में उतर सके तो मायावती ने दूरी क्यों बनाई रखी थी? हार के पीछे मायावती के प्रचार अभियान और रैली को छोड़ना एक मुख्य कारण है। हालांकि, अब उन्होंने अपने नेताओं पर कार्रवाई की चेतावनी देते हुए यह संदेश दिया जा रहा है कि 2024 की तैयारी में मजबूती से जुटें, अन्यथा पार्टी से निष्कासित किए जाएंगे।
बीएसपी की हार के लिए कई फैक्टर जिम्मेदार
बीएसपी की निकाय चुनाव में हार के बाद मायावती के सामने कई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। पहले तो यह चुनौती उन्हें बीजेपी और सपा के साथी रूप में लड़ने के लिए करार दी है, लेकिन मेरठ में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम द्वारा मजबूती से चुनाव लड़ने से उन्हें बड़ी परेशानी हुई है। पदाधिकारियों पर कार्रवाई करने के माध्यम से हार का ठीकरा फोड़ना कितना सही है और कितना गलत, यह पार्टी के निर्णय पर निर्भर करेगा। हालांकि, इस कार्रवाई से मायावती ने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है।