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मेरा परिवार नहीं जानता कि मैं एक वैश्या हूं

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50 साल का ग्राहक भी 16 साल की लड़की ढूंढता है…

एक समलैंगिक व्यक्ति ने मुझे उस कमरे तक पहुँचाने में मदद की जहाँ यौनकर्मी काम करती हैं।

वाराणसी का शिवदासपुर...आप किसी से यहां का पता पूछेंगे तो वह बताने से पहले घूरेगा। पता बताने से पहले पूछेगा "क्या काम है?" ऐसा इसलिए क्योंकि शिवदासपुर यूपी का सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया है। 24 हजार आबादी वाले इस गांव में 35 ऐसे घर हैं, जिसके सामने लड़कियां और महिलाएं तैयार खड़ी दिखती हैं। उन्हें बुलाने के लिए कोई युवा आए या 65 साल का बुजुर्ग, सबकी चाहत 16 साल की लड़की ही होती है।

दैनिक भास्कर की टीम शिवदासपुर पहुंची। सेक्स वर्कर्स के कमरे तक गई। इसमें शामिल महिलाओं से और उनकी उन नाबालिग लड़कियों से बात की जो इसी धंधे में आ गईं। ग्राहकों की लाइव मारपीट देखी। आइए इस रहस्यमयी दुनिया की पूरी सच्चाई सिलसिलेवार तरीके से जानते हैं...

गरीबी बंद दरवाजे के पीछे कपड़े उतारने को मजबूर कर देती है
सेक्स वर्कर्स के बीच पहुंचकर सबसे पहले हमारी मुलाकात मीना से हुई। मीना 65 साल की हैं और पटना से यहां आई हैं। वो बताती हैं, “मैं बहुत गरीब घर से थी। पैसे की जरूरत थी तो 20 साल की उम्र में एक आदमी काम के बहाने से यहां ले आया। यहां सब देखकर पहले तो मैं हैरान हो गई। पर हम इतने गरीब थे कि बंद दरवाजे के पीछे कपड़े उतारना हमारी मजबूरी बन गया। धीरे-धीरे ये काम ही मेरी दुनिया बन गया।”

मैं वैश्या हूं, इसलिए मेरे बेटे को नौकरी नहीं मिली
मीना आगे बताती हैं कि धंधे में आने के कुछ सालों बाद मैंने एक लड़के को जन्म दिया। इसका बाप कौन है मुझे नहीं पता पर मैं खुश थी। खुश इसलिए कि मैं अब धंधे से इतने पैसे कमा लेती थी कि अपने लड़के की देखभाल कर पाऊं। उसे अच्छे स्कूल कॉलेज में पढ़ा पाऊं। मैंने उसे इंजीनियरिंग की पढ़ाई करवा दी। लेकिन उसे इसलिए नौकरी नहीं मिली क्योंकि उसकी मां वेश्यावृत्ति के धंधे में है। अब वह पैकेट बंद दूध बेचता है।

बूढ़ी हूं, इसलिए अब मेरा शरीर बिकाऊ नहीं
अब घर कैसे चलता है ये सवाल पूछने पर मीना बताती हैं कि पहले तो एक ग्राहक के 300-400 रुपए मिल जाते थे पर अब कोई ग्राहक हमें तो लेकर जाएगा नहीं। चाहें लड़का आए या 50 साल का आदमी, सबको चाहिए 16 साल की लड़की ही। मेरे पुराने कस्टमर कुछ सालों तक आते थे पर अब तो वो भी नहीं आते। बेटे की कमाई से ही घर चलता है। बाकी मैं लोगों के घरों में चौका-बासन करके थोड़े पैसे कमा लेती।

जब हम मीना से बात कर रहे थे तो पास में ही प्रीति और प्रियंका भी खड़ी थीं। प्रीति जिन घरवालों के लिए ये काम करती हैं उन्हें आज तक पता ही नहीं। इन दोनों की भी कहानी हम बताएंगे पर पहले देश में सेक्स वर्कर्स के आंकड़ों से जुड़ा ये ग्राफिक देखिए।

घरवालों को नहीं पता मैं ये धंधा करती हूं
दरभंगा की प्रीति इस काम में करीब 10 साल से हैं। इससे पहले वो ऑर्केस्ट्रा में नाचने का काम करती थीं। लेकिन वो काम हर वक्त नहीं मिलता इसलिए ज्यादा कमाई नहीं होती थी। एक दोस्त ने इस धंधे के बारे में बताया। प्रीति कहती हैं, “मेरी 4 छोटी बहनें हैं। मां-बाप इस दुनिया में नहीं हैं। अपनी बहनों का पेट पालने के लिए मैंने इस काम को तुरंत हां कर दी। अब यही काम मेरी कमाई का जरिया है।”

प्रीति के पिता ही अब उसके बेटे के पिता हैं
दरभंगा की प्रीति इस धंधे में करीब 10 साल से हैं। उनका एक बेटा है। बहनों को लगता है कि ये बच्चा प्रीति को कहीं पड़ा मिला था जिसे पालने के लिए वो घर ले आई। वो कहती हैं, “घर पर नहीं पता, पर मैं जानती हूं कि इस बच्चे की मां और बाप दोनों मैं ही हूं। अपने बच्चे और पूरे परिवार को इस धंधे से दूर रखना चाहती हूं। इसलिए अपने लड़के को अच्छे से पढ़ना चाहती हूं।

जब मैं स्कूल में एडमिशन कराने गई तो फॉर्म में पिता का नाम लिखना जरूरी था। इसलिए मैंने अपने पिता का नाम ही अपने बच्चे के पिता के नाम की जगह पर लिख दिया। यहां कई लड़कियों ने ऐसा ही किया है। मैं भी नहीं चाहती कि मेरे बेटे को कभी पता चले कि जिन पैसों से वो पढ़ाई कर रहा वो कहां से आते हैं।

हम यह सब बात कर ही रहे थे तभी सामने वाले घर में मारपीट होने लगी, हमारे साथ बैठी प्रियंका भागकर वहां पहुंची और मारपीट में शामिल हो गई। झगड़े की वजह अजीब थी।

200 रुपए पर तय था, लड़की ने 300 ले लिया
22-23 साल का लड़का एक लड़की से संबंध बनाने के बाद कमरे से बाहर निकला। तय 200 रुपए पर था लेकिन लड़की ने 300 रुपए ले लिए। इस बात को लेकर झगड़ा होने लगा। लड़की ने लड़के को थप्पड़ मारा तो लड़के ने भी मार दिया। इसके बाद आसपास के घरों के बाहर बैठी महिलाएं और लड़कियां उस लड़के पर टूट पड़ी। लड़के काक बाल पकड़कर जमकर पीटा। चप्पल से मारा। लड़का किसी तरह से पुलिस को बुलाने की बात कहकर वहां से बचकर भाग निकला।

पुलिस की जरूरत नहीं पड़ती, खुद निपट लेते हैं

इस लड़ाई के शांत होने पर हमने बात आगे बढ़ाई। पता चला कि इलाके में किसी ग्राहक के फोन करने पर पुलिस नहीं आती। धंधे में शामिल प्रियंका कहती है, “यहां हमें किसी की मदद की जरूरत नहीं है। हमें निपटना आता है। यहां किसी ने कभी भी फोन करके पुलिस को नहीं बुलाया। कोई बुलाएगा भी तो भी पुलिस नहीं आएगी।” हालांकि वो पुलिस से सेटिंग या हफ्ता देने की बात से इंकार करती हैं।

रेड लाइट एरिया में झगड़े की वजह जाननी चाही तो वहां के एक लोकल दुकानदार ने बताया, “सब कुछ पैसे के लिए होता है। जितने में तय होता है बाद में लड़कियां उससे ज्यादा पैसा ले लेती हैं। ग्राहक बहस करेगा तो मार खाएगा। जो यहां लगातार आते हैं वह जेब में उतना ही पैसा लेकर आते हैं जितनी जरूरत होती है।”

2005 में अजय ने इसी शिवदासपुर में 50 नाबालिग बच्चियों दलालों के चंगुल से छुड़ाया था। तब करीब 10 कोठे सीज हुए। उस वक्त न्यूज चैनलों ने छापेमारी का लाइव प्रसारण किया था। कुछ दिन बाद ही एसटीएफ के इंस्पेक्टर विपिन राय ने शिवदासपुर के सबसे बड़े दलाल रहमत का एनकाउंटर किया था।

अजीत सिंह अब तक करीब 500 दलालों को जेल भिजवा चुके हैं। ये सब करना आसान नहीं था। 24 बार उनके ऊपर जानलेवा हमले हुए। लेकिन वह पीछे नहीं हटे। नतीजा ये रहा कि अमिताभ बच्चन समेत बड़े-बड़े सेलिब्रिटी अजीत की इस पहल की तारीफ करते हैं।

फिलहाल…
रेड लाइट एरिया में बड़े सुधार की जरूरत है। शौक से काम करने वाली से कहीं ज्यादा जबरदस्ती और मजबूरी में काम कर रही लड़कियां हैं। अगर उनके सामने काम के दूसरे ऑप्शन रखे जाएं तो वह इस धंधे को छोड़ सकती हैं। कई संगठनों ने प्रयास भी किया। वह सफल भी हुए। लेकिन, यह संगठन के स्तर पर नहीं सरकार के स्तर पर ही सही हो सकता है।

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