पहुंचने से पहले, लूना-25 लैंडर चांद की सतह से लगभग 100 किलोमीटर ऊपर उठकर तीन से सात दिन तक का समय बिताएगा। इससे पहले, 1958 और 1976 के बीच USSR ने 24 लूना मिशनों की शुरुआत की थी।
रूस चंद्रमा मिशन: रूसी स्पेस एजेंसी रोस्कोस्मोस ने 1976 के बाद पहली बार चांद पर अपना मून मिशन भेजा है, जिसका मतलब है कि यह 47 सालों के बाद की घटना है। रूस ने लूना-25 लैंडर को वोस्तोचन अंतरिक्ष बंदरगाह से सुबह 8:10 मिनट (स्थानीय समय) पर लॉन्च किया। एपी की रिपोर्ट के अनुसार, रूसी वैज्ञानिकों का मानना है कि लूना-25 21 अगस्त तक चांद के दक्षिणी पोल पर पहुंचेगा।
रूस ने लूना-25 लैंडर को सोयुज 2.1 बी रॉकेट के जरिए लॉन्च किया है, जिसकी लंबाई करीब 46.3 मीटर है। इसका डायमीटर 10.3 मीटर है और वजन लगभग 313 टन है। इस मिशन को लूना-ग्लोब मिशन भी कहा जाता है।
चंद्रयान-3 से दो दिन पहले लैंड कर जाएगा
लूना-25 लैंडर को पूरी तरह से रूस में तैयार किया गया है, और यह पहली बार है कि रूस ने मून मिशन के लिए स्वयं ही सारी तैयारियाँ की हैं। इससे पहले, USSR ने सितंबर 1958 और अगस्त 1976 के बीच 24 लूना मिशन लॉन्च किए थे। अगर लूना-25 सफलतापूर्वक चांद पर उतरता है, तो यह भारत के चंद्रयान-3 के लैंडिंग से दो दिन पहले ही चंद्रमा पर सफलतापूर्वक लैंड करेगा।
तीन देश ही चांद पर सफल लैंडिंग में कामयाब
अब तक के इतिहास में केवल तीन देशों ने ही चंद्रमा पर सफल लैंडिंग की प्राप्ति हासिल की है, और ये देश सोवियत संघ (USSR), अमेरिका और चीन हैं। भारत और रूस का लक्ष्य चंद्रमा के साउथ पोल पर पहले उतरने की संभावना है।
रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस ने यह बताया कि उन्हें दिखाना है कि वे चंद्रमा पर पेलोड पहुंचाने में सक्षम हैं, और उनकी यह प्रयासों से चंद्रमा की सतह तक पहुंचने की पूरी गारंटी है।
प्रतिबंधों की वजह से देरी
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के परिणामस्वरूप लगाए गए प्रतिबंधों के कारण, रूस के स्पेस प्रोग्राम पर असर पड़ा है। विश्लेषकों के अनुसार, पहले लूना-25 मिशन शुरू होते समय एक छोटे मून रोवर को ले जाने की योजना थी। हालांकि, इसके बाद स्पेसक्राफ्ट के वजन को कम करने की विचारणा को छोड़ दिया गया।