सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका में एक व्यक्ति ने आरोप लगाया था कि उसकी दो बेटियों का ब्रेनवॉश कर उन्हें ईशा फाउंडेशन में रहने के लिए मजबूर किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन को महत्वपूर्ण राहत देते हुए इस फाउंडेशन के खिलाफ सभी कार्यवाहियों को रद्द कर दिया। एक व्यक्ति ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि उसकी दो बेटियों का ब्रेनवॉश करके उन्हें कोयंबटूर स्थित ईशा फाउंडेशन में रहने के लिए मजबूर किया गया।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का जग्गी वासुदेव ने स्वागत किया है। उन्होंने एक ट्वीट में कहा, “हम देश के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हैं। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोर्ट को दुर्भावनापूर्ण इरादे से दायर की गई तुच्छ याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए अपना समय बर्बाद करना पड़ता है, जबकि वास्तविक मामलों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। समय आ गया है कि हम लोकतंत्र के विशेषाधिकारों का अधिक जिम्मेदारी से उपयोग करना सीखें।”
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा, “दोनों महिलाएं बालिग हैं और उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि वे स्वेच्छा से और बिना किसी दबाव के आश्रम में रह रही हैं।” बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का उद्देश्य कोर्ट से ऐसे व्यक्ति को प्रस्तुत करने का निर्देश मांगना होता है जो लापता है या जिसे अवैध रूप से बंधक बना कर रखा गया है।
बेंच ने यह भी बताया कि उसके तीन अक्टूबर के आदेश के अनुपालन में पुलिस ने स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत की है। बेंच ने निष्कर्ष निकाला कि सुप्रीम कोर्ट के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका से संबंधित कार्यवाहियों का दायरा बढ़ाना अनावश्यक होगा।
क्या है मामला?
यह याचिका पहले मद्रास उच्च न्यायालय में दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने तीन अक्टूबर को तमिलनाडु के कोयंबटूर में ईशा फाउंडेशन के आश्रम में दो महिलाओं को कथित रूप से अवैध रूप से बंधक बनाए रखने के मामले की पुलिस जांच पर प्रभावी रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को अपने पास स्थानांतरित करते हुए तमिलनाडु पुलिस को निर्देश दिया था कि वह हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में कोई और कार्रवाई न करे, जिसमें पुलिस को इन महिलाओं के कथित अवैध बंधक रखने के मामले की जांच करने का निर्देश दिया गया था।
ईशा फाउंडेशन ने हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसमें निर्देश दिया गया था कि कोयंबटूर पुलिस फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी मामलों का विवरण एकत्र करे और आगे की कार्रवाई के लिए उन्हें कोर्ट में पेश करे।