आलमगीर मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) से संबंधित मामले में, सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने फैसला सुनाया। इस बेंच में चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना और अन्य जज शामिल थे। CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि इस मामले में यह तय करना जरूरी है कि किसी संस्थान को अल्पसंख्यक का दर्जा कैसे दिया जाता है।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पर सुप्रीम कोर्ट लाइव अपडेट: सुप्रीम कोर्ट ने 8 नवंबर 2024 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे की बहाली से जुड़े मामले पर 4:3 के बहुमत से फैसला सुनाया। इस मामले पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई में सात जजों की बेंच ने अहम टिप्पणी की।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि यह तय करना है कि किसी संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा कैसे दिया जा सकता है। इसके अनुसार, भाषाई, सांस्कृतिक या धार्मिक अल्पसंख्यक अपने लिए संस्थान बना सकते हैं, लेकिन यह सरकारी नियमों से पूरी तरह अलग नहीं होते।
फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि चाहे कोई शैक्षणिक संस्थान संविधान लागू होने से पहले स्थापित हुआ हो या बाद में, इससे उसके दर्जे में कोई परिवर्तन नहीं आएगा। संस्थान के स्थापित होने और सरकारी तंत्र का हिस्सा बनने में फर्क है, लेकिन आर्टिकल 30(1) का उद्देश्य यही है कि अल्पसंख्यकों द्वारा बनाए गए संस्थान को वे खुद ही संचालित करें।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि “कोर्ट को यह देखना होगा कि संस्थान के निर्माण के समय फंड और जमीन का प्रबंध किसने किया था। हम अजीज बाशा फैसले को ओवररूल कर रहे हैं, लेकिन AMU के दर्जे पर अंतिम फैसला तीन जजों की बेंच बाद में करेगी।” अजीज बाशा बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) एक अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।
इससे पहले, AMU के मामले पर पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने यह दलील दी थी कि AMU को अल्पसंख्यक खांचे में रखना सही नहीं है। इस पर कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था। इस मामले पर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने सुनवाई की थी।