4 सितंबर 1987 को, एक 18 वर्षीय युवती को उसके पति की चिता के साथ सती कर दिया गया था। पिछले सप्ताह, इस मामले में अदालत ने 8 आरोपियों को बरी कर दिया।
रूप कंवर: भारत में सती प्रथा पर कई दशक पहले ही प्रतिबंध लग चुका है, लेकिन हाल ही में 37 साल पुराने एक मामले के अदालत के फैसले ने इस प्रथा पर फिर से बहस छेड़ दी है। 1987 में राजस्थान के देवराला गांव में, रूप कंवर नाम की एक किशोर विधवा को उसके पति की चिता के साथ जला दिया गया था, जिसे “रूप कंवर सती कांड” के रूप में जाना जाता है। इस घटना के बाद पूरे देश में आक्रोश फैल गया था। हाल ही में, एक अदालत ने इस मामले में सती महिमामंडन के आरोपियों को सबूतों की कमी के कारण बरी कर दिया, जिससे यह मामला फिर सुर्खियों में आ गया है।
सती प्रथा पर सबसे पहले 1829 में ब्रिटिश शासन के दौरान प्रतिबंध लगाया गया था, लेकिन 1947 में भारत की आजादी के बाद भी कभी-कभार इसके मामले सामने आते रहे। रूप कंवर को भारत की आखिरी सती के रूप में माना जाता है। इस घटना के बाद, 1987 में भारत सरकार ने “सती निवारण अधिनियम” पेश किया, जिसके तहत सती प्रथा को बढ़ावा देने या उसका महिमामंडन करने पर सख्त सजा का प्रावधान किया गया।
राजस्थान महिला संगठन ने सीएम को लिखा पत्र
रूप कंवर की मौत के 37 साल बाद भी इस मामले में किसी को दोषी नहीं ठहराया गया है। पिछले सप्ताह, अदालत ने इस मामले के 8 आरोपियों को बरी कर दिया, जिससे महिला संगठनों और कार्यकर्ताओं में नाराजगी फैल गई।
इसके बाद, राजस्थान के 14 महिला संगठनों ने मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा को एक पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने इस मामले को हाई कोर्ट में पेश करने की मांग की है। उनका कहना है कि अदालत का यह फैसला सती महिमामंडन की संस्कृति को पुनर्जीवित कर सकता है।
राजस्थान के न्याय मंत्री ने इस पर क्या प्रतिक्रिया दी? बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, आरोपियों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने बताया कि सबूतों की कमी के कारण आरोपियों को बरी किया गया। जब राजस्थान के न्याय मंत्री जोगाराम पटेल से पूछा गया कि क्या सरकार इस फैसले को चुनौती देगी, तो उन्होंने कहा कि उन्हें अभी तक इस फैसले की कॉपी प्राप्त नहीं हुई है। कॉपी मिलने के बाद इसकी जांच करेंगे और फिर कोई निर्णय लेंगे।
कैसे सती हुई थी रूप कंवर?
4 सितंबर 1987 को, 18 वर्षीय रूप कंवर को उसके पति माल सिंह की चिता पर सती कर दिया गया था। पति की मृत्यु के बाद, उनके परिवार और आस-पास के लोगों ने कहा कि रूप कंवर ने सती प्रथा के अनुसार यह निर्णय खुद लिया।
कहा जाता है कि रूप कंवर ने इस दौरान शादी का जोड़ा पहनकर पूरे गांव में चक्कर लगाया। इसके बाद, वह चिता पर चढ़कर अपने पति का सिर गोद में रखकर धार्मिक मंत्रों का जाप करते हुए अपनी जान दे दी।
रूप कंवर के माता-पिता ने शुरुआत में इस बात से इनकार किया, लेकिन बाद में उन्होंने दावा किया कि यह निर्णय उनकी बेटी ने स्वयं लिया था। हालांकि, कुछ लोगों का कहना है कि यह दावा सामुदायिक दबाव के चलते किया गया था, ताकि घटना का राजनीतिक लाभ उठाने के लिए राजपूत समुदाय का समर्थन जुटाया जा सके।
रूप कंवर की मौत के बाद, देवराला गांव में सती के महिमामंडन के लिए बड़ी संख्या में लोग प्रदर्शन के लिए एकत्र हुए। घटना के 13 दिन बाद, 2 लाख से अधिक लोग एक समारोह में शामिल हुए, जहां रूप कंवर की तस्वीरों और पोस्टरों को बेचा गया।