निश्चित रूप से, नासा ने मंगल ग्रह पर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है, जो संभावित रूप से इसे मनुष्यों के लिए एक गंतव्य बना सकती है।
मंगल ग्रह पर उत्पादित ऑक्सीजन: मंगल ग्रह को इंसानों के लिए अगला संभावित गंतव्य माना जा रहा है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा इस ग्रह पर इंसानों को भेजने की तैयारी कर रही है। एलन मस्क की अंतरिक्ष कंपनी स्पेसएक्स भी मंगल ग्रह पर मानव बस्ती बसाने में सक्रिय है। हालाँकि, मंगल ग्रह पर ऑक्सीजन की कमी है, जिसका अर्थ है कि मनुष्य वहाँ जीवित नहीं रह सकते। बहरहाल, नासा ने अब इस चुनौती पर काबू पा लिया है।
हाल ही में एक ब्लॉग पोस्ट में, नासा ने खुलासा किया कि उसने मंगल ग्रह पर सफलतापूर्वक ऑक्सीजन उत्पन्न किया है। नासा का पर्सिवरेंस रोवर मंगल ग्रह की खोज कर रहा है और एजेंसी ने रोवर का उपयोग करके ऑक्सीजन का उत्पादन करने के लिए एक प्रयोग किया, जो पूरी तरह से सफल साबित हुआ है। यह उपलब्धि एक महत्वपूर्ण सफलता का प्रतीक है, जिसने लाल ग्रह पर संभावित मानव निवास के लिए द्वार खोल दिया है।
किस तरह तैयार हुआ ऑक्सीजन?
संयुक्त राज्य अमेरिका में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) ने एक माइक्रोवेव-ओवन आकार का उपकरण विकसित किया है जिसे MOXIE के नाम से जाना जाता है। नासा ने बताया कि MOXIE को एक रोवर के साथ मंगल ग्रह पर भेजा गया था और यह ग्रह पर मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड से ऑक्सीजन का उत्पादन करने में सहायक था। अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि इस परीक्षण से मंगल के वातावरण में पाए जाने वाले कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदलने की क्षमता प्रदर्शित हुई। यह तकनीक मंगल ग्रह पर भविष्य के मिशनों को बहुत आसान बना देगी।
MOXIE के जरिए NASA ने 122 ग्राम ऑक्सीजन का उत्पादन किया है। हालाँकि यह एक छोटी मात्रा लग सकती है, लेकिन डिवाइस ने अनुमान से अधिक ऑक्सीजन उत्पन्न करके अपेक्षाओं को पार कर लिया है। MOXIE द्वारा उत्पादित ऑक्सीजन 98% तक शुद्ध या उससे भी बेहतर है। नासा का सुझाव है कि इस ऑक्सीजन का उपयोग न केवल सांस लेने के लिए बल्कि ईंधन के रूप में भी किया जा सकता है। नासा के वैज्ञानिक चंद्रमा और मंगल जैसे खगोलीय पिंडों पर आधार स्थापित करने के लिए इस तकनीक के महत्व पर जोर देते हैं।
किस तरह काम करता है MOXIE?
NASA के रोवर के साथ भेजा गया MOXIE डिवाइस एक इलेक्ट्रोकेमिकल प्रक्रिया का उपयोग करता है। यह मंगल के वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के प्रत्येक अणु से एक ऑक्सीजन परमाणु को अलग करता है। बाद में, उत्पन्न ऑक्सीजन परमाणुओं का उनकी शुद्धता निर्धारित करने के लिए विश्लेषण किया जाता है। इसके अतिरिक्त, उत्पादित ऑक्सीजन गैस की मात्रा मापी जाती है। यह तकनीक अंतरिक्ष यात्रियों को लंबे समय तक मंगल ग्रह पर टिके रहने में सक्षम बनाती है।