मूर्ति गोस्वामी ने याचिका में दावा किया था कि रचित रामचरितमानस में निषादराज का उल्लेख नहीं है, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस दावे को खारिज करते हुए अपना फैसला सुनाया है।
यूपी समाचार: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भगवान राम और निषादराज की मूर्ति में बदलाव की मांग करने वाली एक याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका में यह आरोप था कि गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस में निषादराज का जिस तरह से उल्लेख किया गया है, वह मूर्ति उसके मुताबिक नहीं है। इस याचिका का मुद्दा प्रयागराज के सोरांव स्थित श्रृंगवेरपुर धाम में एक प्रतिमा के संबंध में था।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को उचित मंच पर अपनी शिकायत का निवारण कराने की स्वतंत्रता दी है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि याचिका में दी गई आरोपों के आधार पर कोई बदलाव की आवश्यकता नहीं है। यहां तक कि अन्य स्थानों पर लगी मूर्तियों में भी गले मिलने का आरोप बिना किसी प्रमाण के खारिज कर दिया गया है। न्यायाधीशों ने कहा कि याचिका में दी गई आरोपों को सही पाया गया है और इसे खारिज करना उचित है।
कार्यपालिका के दायरे में आता है- कोर्ट
याचिकाकर्ता के अनुसार, वह मूर्ति गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में निषादराज के उल्लेख के मुताबिक नहीं है। अदालत ने यह बताया कि “हमारे विचार से जो मुद्दा यहां उठाया जा रहा है, मौजूदा सुनवाई में उस पर निर्णय नहीं किया जा सकता। यह कार्यपालिका के दायरे में आता है। हम इस बात से संतुष्ट नहीं हैं कि याचिकाकर्ता या उसके समुदाय के लोगों के किसी संवैधानिक अधिकार का हनन किया गया है।”
श्रृंगवेरपुर का उल्लेख रामायण में किया गया है जहां इसे निषादराज की राजधानी के तौर पर बताया गया है। रामायण में उल्लेख है कि भगवान राम, उनके भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता वन गमन से पूर्व एक रात इस गांव में ठहरे थे। मूर्ति गवान राम और निषादराज की, जो करीब 50 फीट ऊंची है, में भगवान राम और निषादराज की आपस में गले मिलते हुए नजर आ रहे हैं।