अखिलेश यादव, समय के इस दौरान, भारतीय गठबंधन के साथ संबंध में असंतुलन में दिख रहे हैं, और उनके बयानों ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में चर्चाओं को बढ़ा दिया है।
लोकसभा चुनाव 2024: लोकसभा चुनाव का समय निकट आता जा रहा है, लेकिन ‘इंडिया’ गठबंधन की पूरी चित्रणी स्पष्ट रूप से तैयार नहीं हो पा रही है। इस मुद्दे पर यूपी में कई आपत्तियाँ उत्पन्न हो रही हैं। इस कठिनाई के बीच, समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने एक बयान दिया है, जिसके बाद लोग यह सोच रहे हैं कि क्या उनका इंडिया गठबंधन के प्रति रुझान कमजोर हो रहा है।
अखिलेश यादव ने आजमगढ़ में एक दौरे पर आए, जहां उन्होंने आगामी चुनाव की स्थिति पर खुलकर चर्चा की, और उन्होंने दावा किया कि पीडीए का तरीका ही एनडीए को हरा सकता है। इस मौके पर उन्होंने इंडिया गठबंधन का उल्लेख नहीं किया और न ही इसके बारे में कोई राय रखी, लेकिन यह स्पष्ट है कि वे पीडीए के माध्यम से ही बीजेपी के साथ सीधे मुकाबले की तैयारी कर रहे हैं।
अखिलेश यादव के इंडिया गठबंधन से मोहभंग?
अखिलेश यादव ने यह कहा कि “पीडीए ही एनडीए का मुकाबला करेगा और जो भाजपा ने पिछले वादे किए हैं, जैसे कि किसानों की आय को दोगुना करना और युवाओं को रोजगार प्रदान करना, उन्हें आज कम से कम इसे दिखाना चाहिए कि इन्होंने कितने लोगों को नौकरी दी है। इतने लोगों को रोजगार मिला है। सामाजिक न्याय बिना जातीय जनगणना के संभव नहीं है। कुछ लोग सबकुछ पा रहे हैं। आज वाइस चांसलर की नियुक्ति में किन्हें मौका मिल रहा है, सरकार के द्वारा किन लोगों को वाइस चांसलर नियुक्त किया जा रहा है, उनके बारे में कौन-कौन सी जानकारी है, और सरकार के पास इस पर कोई जवाब नहीं है।”
कांग्रेस के साथ फिर दिखी तल्ख़ी
यह पहली बार नहीं है जब अखिलेश यादव ने इस प्रकार का रुख दिखाया है। सपा अध्यक्ष ने हाल ही में कई बार कांग्रेस के साथ तनावयुक्त संबंधों का सामना किया है। अखिलेश ने कांग्रेस पर जातिवादी जनगणना के मुद्दे को हड़पने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा कि जातिवादी जनगणना, ओबीसी के मुद्दे और महिलाओं के मुद्दों को उठाने में उनका योगदान था, लेकिन कांग्रेस हमारे मुद्दों को अपना बना रही है।
इसी बीच, इंडिया गठबंधन में बसपा सुप्रीमो मायावती की शामिली की संभावना पर भी बहस है, खबरों के मुताबिक कांग्रेस और बसपा के बीच इस मुद्दे पर चर्चा चल रही है। लेकिन अखिलेश यादव नहीं चाहते कि बसपा इंडिया गठबंधन के साथ आए, सपा का मानना है कि बसपा के आने से उनकी सीटों पर दावेदारी में कमी होगी। वहीं कई सपा नेता यह भी मानते हैं कि बसपा अपना वोट दूसरे दलों के पक्ष में नहीं कर पाती है। 2019 चुनाव में भी ऐसा ही देखा गया था, जब बसपा को तो गठबंधन का फ़ायदा हुआ लेकिन सपा की सीटें नहीं बढ़ीं थीं।