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क्यों स्वीकार नहीं किया पूर्व सीजेआई का ऑफर…

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अभिनव चंद्रचूड़ ने अपनी पुस्तक में बताया है कि पहले जजों की वेतन बहुत कम होती थी, जिसके कारण चार वकीलों ने पूर्व सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ के जज बनने का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था।

भारतीय न्यायिका के इतिहास में कई ऐसे वकील हुए हैं, जिन्होंने अपने नाम को जजों से भी ऊँचा किया है। इन वकीलों को न्यायिक सेवाओं में शामिल होने का मौका भी मिला था, लेकिन वे इसे भी ठुकरा दिया था। 1970 के दशक में चार वकील ऐसे ही थे, जिन्हें भारतीय सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनाने की प्राप्ति की गई थी, लेकिन इन वकीलों ने सीजेआई का यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया था।

बॉम्बे हाईकोर्ट के वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने अपनी पुस्तक ‘सुप्रीम व्हिसपर्स’ में इस घटना का विवरण दिया है। उन्होंने बताया है कि चार वकीलों से पूर्व सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ ने मीटिंग की थी, लेकिन वे उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। अभिनव चंद्रचूड़ ने अपनी पुस्तक में बताया है कि कम वेतन के कारण चार वकीलों ने जजशिप के प्रस्ताव को इनकार कर दिया था। इन चार वकीलों के नाम हैं के. परासरन, फली एस. नरीमन, ए.एन. काकर, और के.के. वेणुगोपाल। पूर्व सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ ने चारों वकीलों को सीधे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने का प्रयास किया था, लेकिन वे इस अवसर को अपनाने से इनकार कर दिया था।

क्यों स्वीकार नहीं किया पूर्व सीजेआई का ऑफर?

पूर्व मुख्य न्यायाधीश वाईवी चंद्रचूड़ ने चार वकीलों से व्यक्तिगत मीटिंग की थी। उन्होंने अपने सीनियर कोलीग्स, जस्टिस पीएन भगवती और जस्टिस कृष्णा अय्यर से भी इस बारे में बात की थी, लेकिन वकीलों ने उनके प्रस्ताव को इनकार किया। अभिनव चंद्रचूड़ ने बताया है कि वकीलों ने ऑफर स्वीकार नहीं करने की मुख्य वजह यह थी कि उस समय न्यायाधीशों को बहुत कम सैलरी मिलती थी। उन्हें पहले भी कम सैलरी की वजह से जज बनने का ऑफर ठुकराना पड़ा था, जैसे कि फली एस. नरीमन ने भी बॉम्बे हाईकोर्ट में जज बनने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था, जब उनकी उम्र केवल ३८ साल थी।

जजों को उस समय कितनी सैलरी मिलती थी, इसका विवरण निम्नलिखित है:

आजादी से पहले, बॉम्बे हाईकोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट के जजों को अच्छी सैलरी मिलती थी। १९५० में, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की सैलरी ५,००० रुपये और बाकी जजों की सैलरी ४,००० रुपये प्रति माह थी। हाईकोर्ट के जजों के लिए सैलरी ४,००० रुपये और बाकी जजों के लिए ३,५०० रुपये प्रति माह निर्धारित की गई थी। यही सैलरी १९८५ तक लागू रही।

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