सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीशों, जिसमें जस्टिस गवई भी शामिल हैं, ने एससी-एसटी वर्ग के क्रीमी लेयर की पहचान कर उन्हें आरक्षण से बाहर रखने की सिफारिश की है। उनका कहना है कि ऐसा करने से एससी-एसटी की अधिक पिछड़ी जातियों को आरक्षण का उचित लाभ मिल सकेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त, 2024 को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण पर एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया, जिसमें कोटे के अंदर कोटे की अनुमति दे दी गई। सात जजों की बेंच ने बहुमत से ईवी चिन्नैया के विचार को खारिज कर दिया। हालांकि, जस्टिस बेला त्रिवेदी ने एससी-एसटी के सबकैटेगरी के निर्णय पर सहमति नहीं जताई।
चार जजों ने इस पर जोर दिया कि अनुसूचित जाति से क्रीमी लेयर को आरक्षण से बाहर रखा जाए। जस्टिस भूषण रामकृष्णन गवई ने विशेष रूप से आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों के बच्चों को एससी/एसटी आरक्षण से अलग रखने की आवश्यकता पर बल दिया।
कोर्ट ने कहा कि यदि अनुसूचित जाति से कोई बड़ा अधिकारी बनता है, तो उसकी अगली पीढ़ी को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए, क्योंकि उन्हें गांवों में रहने वाली छोटी जातियों की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ा है। मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस भूषण रामकृष्णन गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा, और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। जस्टिस गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पंकज मित्तल, और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने भी क्रीमी लेयर को आरक्षण से बाहर रखने पर सहमति जताई।
एससी-एसटी से क्रीमी लेयर को अलग रखा जाए, बोले जस्टिस गवई
क्रीमी लेयर का सिद्धांत फिलहाल सिर्फ पिछड़ा वर्ग के लिए लागू है। अब सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने सुझाव दिया है कि क्रीमी लेयर की पहचान कर उन्हें आरक्षण से बाहर रखा जाए, ताकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की अधिक पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ मिल सके। जस्टिस गवई ने कहा कि आरक्षण का उद्देश्य देश में समानता लाना है, और इसके लिए एससी-एसटी में क्रीमी लेयर को आरक्षण से अलग रखना आवश्यक है।
तीन जजों ने जस्टिस गवई की इस राय का समर्थन किया। जस्टिस गवई ने कहा कि राज्य सरकारों को नीतियां बनानी चाहिए और एससी-एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान कर उन्हें आरक्षण से अलग रखना चाहिए, ताकि समानता लाई जा सके। जस्टिस विक्रम नाथ ने इस पर सहमति जताते हुए कहा कि क्रीमी लेयर का सिद्धांत ओबीसी की तरह एससी-एसटी पर भी लागू होना चाहिए, हालांकि एससी-एसटी के लिए आरक्षण के मानदंड ओबीसी से भिन्न हो सकते हैं। जस्टिस पंकज मित्तल ने कहा कि आरक्षण केवल पहली पीढ़ी के लिए होना चाहिए, दूसरी पीढ़ी के लिए नहीं, और राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दूसरी पीढ़ी की स्थिति सामान्य जातियों के समान हो गई है या नहीं।
जस्टिस सतीश चंद्र ने भी इस पर सहमति जताते हुए कहा कि एससी-एसटी के बीच क्रीमी लेयर की पहचान एक संवैधानिक आवश्यकता बननी चाहिए। जस्टिस गवई ने बताया कि जब एससी या एसटी से कोई व्यक्ति आईएएस, आईपीएस, या आईएफएस रैंक का अधिकारी बन जाता है, तो उसके बच्चों को गांवों में रहने वाले लोगों की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता, फिर भी वह एससी-एसटी जाति से होने के कारण आरक्षण का लाभ प्राप्त करता है और दूसरी-तीसरी पीढ़ी तक कोटा मिलता रहता है।