लेटरल एंट्री के मुद्दे पर मोदी सरकार की कड़ी आलोचना की जा रही है। विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया के माध्यम से पिछड़े, दलित, और आदिवासी समुदायों को आरक्षण के लाभ से वंचित किया जा रहा है।
नेहरू सरकार के दौरान पार्श्व प्रवेश: देश में लेटरल एंट्री का मुद्दा इस समय काफी गर्मा गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 45 मिड-लेवल स्पेशलिस्ट की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया है, जो लेटरल एंट्री के माध्यम से की जाएगी। इस पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि सरकार दलित और आदिवासी समुदायों के आरक्षण को समाप्त करने का प्रयास कर रही है। विपक्ष के अधिकांश दल इस योजना को आरक्षण का उल्लंघन मानते हैं और इसे आरक्षण के अधिकारों को छीनने के लिए लाए गए कदम के रूप में देख रहे हैं।
हालांकि, लेटरल एंट्री की परंपरा का इतिहास स्वतंत्रता के बाद की सरकारों से जुड़ा हुआ है। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार में भी कई महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के माध्यम से नियुक्तियां की गई थीं। जिन लोगों को लेटरल एंट्री के जरिए नियुक्त किया गया, उन्हें देश के शीर्ष पदों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। कांग्रेस की कई सरकारों ने भी मंत्रालयों में लेटरल एंट्री के जरिए नियुक्तियां की थीं।
नेहरू सरकार में किसे मिली किन विभागों की जिम्मेदारी?
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, लेटरल एंट्री की परंपरा भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था में एक लंबे इतिहास को दर्शाती है। 1959 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ‘इंडस्ट्रियल मैनेजमेंट पूल’ की शुरुआत की थी, जिसके तहत मंतोष सोढ़ी और वी कृष्णमूर्ति जैसे वरिष्ठ अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया गया। मंतोष सोढ़ी को हेवी इंडस्ट्री के सेक्रेटरी की जिम्मेदारी सौंपी गई, और वी कृष्णमूर्ति को भी इसी क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई।
नेहरू सरकार के समय डी वी कपूर को तीन मंत्रालयों—बिजली, हेवी इंडस्ट्री और केमिकल एंड पेट्रोकेमिकल—का सचिव बनाया गया। 1954 में आईजी पटेल को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का डिप्टी आर्थिक सलाहकार बनाया गया, और बाद में उन्हें आर्थिक मामलों का सेक्रेटरी और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) का गवर्नर नियुक्त किया गया।
इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकारों के दौरान भी लेटरल एंट्री का चलन जारी रहा। इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 1971 में मनमोहन सिंह को वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया। राजीव गांधी ने केरल इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के अध्यक्ष केपी पी नांबियार को इलेक्ट्रॉनिक्स सचिव बनाया और सैम पित्रोदा को सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स (सी-डॉट) का प्रमुख नियुक्त किया।