प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार के अधिकांश गांवों के 40-50 प्रतिशत युवा शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि 100 में से 80 प्रतिशत लोग दिनभर की मेहनत के बावजूद 100 रुपये भी नहीं कमा पाते हैं।
राजनीतिक रणनीतिकार और जन सुराज के संयोजक प्रशांत किशोर ने बिहार की गरीबी की वास्तविकता पर प्रकाश डाला है। उन्होंने कहा कि सरकारी आंकड़े और रिपोर्टें बिहार की गरीबी को जिस तरह दिखाती हैं, वास्तविक स्थिति उससे भी ज्यादा गंभीर है। उन्होंने बताया कि बिहार में वृद्धावस्था पेंशन प्राप्त करने के लिए घूस देना पड़ता है, और महीनों बाद पेंशन मिलती है।
प्रशांत किशोर, जो खुद बिहार में पले-बढ़े हैं, ने कहा कि उन्हें भी इस हकीकत का अंदाजा नहीं था कि लोग इतनी गंभीर गरीबी में जी रहे हैं। उन्होंने बताया कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बिहार एकमात्र ऐसा राज्य है जहां वृद्धावस्था पेंशन 400 रुपये है। लोग इस आंकड़े को देखकर सोचते हैं कि 400 रुपये में जीवन कैसे चलता होगा। उन्होंने कहा, “महंगाई के इस दौर में 400 रुपये की पेंशन और उसके लिए भी महीनों इंतजार करना पड़ता है। इसके अलावा, 20 रुपये घूस देने के बाद ही 380 रुपये मिलते हैं।”
हर गांव के 40-50 फीसदी लोग करते हैं पलायन?
प्रशांत किशोर ने बिहार की ग्रामीण गरीबी पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जब उन्होंने 52-53 हजार गांवों का दौरा किया, तो वहां की हालत बेहद गंभीर पाई। उन्होंने बताया कि बिहार के गांवों में 40 से 50 प्रतिशत युवा या तो पढ़ाई के लिए या मजदूरी के लिए पलायन कर चुके हैं।
किशोर ने बिहार की प्रति व्यक्ति आय की तुलना की, जिसमें बिहार की प्रति व्यक्ति आय 32,000 रुपये है, जबकि देश की औसत प्रति व्यक्ति आय 1,35,000 रुपये है। पटना और बेगुसराय जिलों को छोड़ने पर, बिहार में प्रति व्यक्ति आय घटकर 24,000 रुपये रह जाती है।
उन्होंने यह भी बताया कि बिहार में 100 में से 80 प्रतिशत लोग एक दिन में 100 रुपये भी नहीं कमा पाते हैं। किशोर ने इस स्थिति को अत्यंत भयावह बताया और स्वीकार किया कि उनकी अनुभव और डेटा की समझ के बावजूद, उन्हें इस हकीकत का अंदाजा नहीं था। उन्होंने बिहार में सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई की और बाद में पोलियो कार्यक्रम चलाया।