प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पोलैंड के दौरे पर हैं, जहां उन्होंने जाम साहब ऑफ नवानगर मेमोरियल पर श्रद्धांजलि अर्पित की। यह मेमोरियल एक भारतीय राजा की याद में बनाया गया है।
भारत-पोलैंड संबंध: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्तमान में पोलैंड के दौरे पर हैं, और यह यात्रा पिछले 45 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा है। भारत और पोलैंड के बीच का संबंध काफी पुराना है, और द्वितीय विश्व युद्ध के समय एक महत्वपूर्ण किस्सा भी जुड़ा हुआ है।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जामनगर के महाराजा और कोल्हापुर के छत्रपति ने हजारों पोलिश शरणार्थियों को अपने यहां आश्रय दिया। ये शरणार्थी पोलैंड में युद्ध की क्रूरता के कारण भारत आए थे। पोलैंड ने जामनगर के महाराजा की कृतज्ञता व्यक्त करते हुए एक मेमोरियल, ‘जाम साहब ऑफ नवानगर मेमोरियल,’ स्थापित किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस मेमोरियल पर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित की है।
नवानगर, जो आज जामनगर के नाम से जाना जाता है, उस समय के महाराजा जाम साहब दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी जाडेजा ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1000 पोलिश यहूदी बच्चों को बचाया। ये बच्चे नाजी जर्मनी द्वारा उत्पीड़ित थे और युद्ध की शुरुआत में साइबेरिया में निर्वासित कर दिए गए थे। सोवियत यूनियन ने पोलिश अनाथ बच्चों के लिए माफी का ऐलान किया, जिससे उन्हें रूस छोड़ने की अनुमति मिली। जाम साहब ने इन बच्चों के लिए भारत में आवास की व्यवस्था की थी। इसके अतिरिक्त, कोल्हापुर में भी भोसले छत्रपति के नेतृत्व में शरणार्थियों के लिए एक शिविर स्थापित किया गया था।
पोलिश बच्चों के लिए बनवाए गए हॉस्टल
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, 1939 में पोलैंड पर सोवियत यूनियन और जर्मनी द्वारा हमले के बाद, पोलिश सरकार जनरल सिकोरस्की के नेतृत्व में लंदन में निर्वासित हो गई। युद्ध के दौरान बच्चों, महिलाओं, अनाथों और विकलांग वयस्कों सहित कई पोलिश नागरिकों को सोवियत यूनियन भेजा गया, जहाँ उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जनरल सिकोरस्की ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल से पोलिश लोगों के लिए शरण की अपील की, और चर्चिल ने उनकी मदद करने के लिए भारत को शरणार्थियों के लिए तैयार किया।
उस समय भारत पर ब्रिटिश शासन था। महाराजा जाम साहब दिग्विजयसिंहजी जाडेजा ने शरणार्थी शिविर स्थापित करने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। उन्होंने बालाचडी में पोलिश बच्चों के लिए शरण दी और वहां हॉस्टलनुमा कमरे बनवाए, जहां बच्चों को खाने, पहनने और इलाज की सुविधाएं दी गईं। पोलिश शिक्षकों को बुलाकर बच्चों को पढ़ाया गया और थिएटर ग्रुप, आर्ट स्टूडियो और सांस्कृतिक गतिविधियाँ स्थापित की गईं, जिससे बच्चे युद्ध की यातनाओं को भूलने लगे।
आज भी पोलैंड महाराजा जाम साहब को ‘गुड महाराजा’ के रूप में याद करता है। पोलैंड ने वारसॉ में एक चौराहे का नाम उनके नाम पर रखा, जिसे ‘स्क्वायर ऑफ द गुड महाराजा’ कहा जाता है। उनके नाम पर एक स्कूल भी है और मरणोपरांत उन्हें पोलैंड गणराज्य द्वारा ‘कमांडर क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मेरिट’ से सम्मानित किया गया। उनकी कहानी करुणा और उदारता का प्रतीक है, खासकर उस समय के अंधकारमय दौर में। इसी प्रकार, छत्रपति भोंसले के नेतृत्व में कोल्हापुर में स्थापित शरणार्थी शिविर ने भी 5,000 से अधिक पोलिश शरणार्थियों को सुरक्षित आश्रय प्रदान किया।