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जवानों को कठिन मौसम से बचाने के लिए बनाए गए पीक पॉड्स…

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भारतीय सेना के जवान माइनस 40 डिग्री की कड़क ठंड में भी सीमा की रक्षा करते हुए मुस्तैद रहते हैं। इसी दौरान सेना के जवानों के लिए पीक पॉड्स तैयार किए गए हैं।

पीक पॉड्स: हिमालय और लेह-लद्दाख की बर्फीली पहाड़ियों पर तैनात भारतीय सेना के जवान माइनस 40 डिग्री तापमान में भी सीमाओं की सुरक्षा करते रहते हैं। अब इन जवानों को कठोर मौसम से बचाने के लिए ‘पीक पॉड्स’ बनाए गए हैं।

‘पीक पॉड्स’ विशेष रूप से माइनस 40 डिग्री जैसी ठंड में सैनिकों के रहने के लिए तैयार किए गए हैं। फिलहाल, सेना की 14 कॉर्प्स के जवान इन पॉड्स में रहकर उनकी कार्यक्षमता का परीक्षण कर रहे हैं। यह यूनिट सियाचिन ग्लेशियर, कारगिल और लेह क्षेत्रों में तैनात है।

इसमें क्या खास है?

डीटेक 360 इनोवेशंस के प्रबंध निदेशक विनय मित्तल ने आईएएनएस को बताया कि डीआरडीओ ने गलवान घाटी में सैनिकों के आवास के लिए उनसे संपर्क किया था, जब उस समय ऐसी कोई व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। उन्होंने ‘आत्मनिर्भर भारत’ के तहत इन ‘पीक पॉड्स’ को विकसित किया। सेना की इंजीनियरिंग कोर की सहायता से लेह में इनका ट्रायल किया गया और लद्दाख के ठंडे वातावरण में इसका परीक्षण किया गया, जिसमें 50 से अधिक सुधार किए गए। इन पॉड्स ने शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस कम तापमान में भी कुशलता से काम किया।

यह खास बात है कि इन्हें 100 प्रतिशत स्वदेशी तकनीक और 93 प्रतिशत भारतीय उत्पादों से तैयार किया गया है। ‘पीक पॉड्स’ अस्थायी आवास के रूप में बर्फीली क्षेत्रों में उपयोग किए जाते हैं और इनमें सोफा-कम-बेड, सामान और खाद्य भंडारण, गर्म और ठंडे पानी की सुविधा, और पूरी तरह काम करने वाले बायो टॉयलेट्स जैसी सुविधाएं मौजूद हैं।

अंदर का तापमान रखता है 15 डिग्री सेल्सियस 

रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, ‘पीक पॉड्स’ अपनी तरह की अनूठी पहल हैं। ये ऊंचाई वाले सैन्य ठिकानों, अनुसंधान स्टेशनों, और बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन जैसी इकाइयों के लिए बेहद उपयोगी हैं। माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तापमान के बावजूद, पॉड्स के अंदर का तापमान 15 डिग्री सेल्सियस रहता है। इन पॉड्स में अत्याधुनिक जैविक शौचालय होते हैं, जिन्हें आसानी से असेंबल और डिस्मेंटल किया जा सकता है। ये फास्ट ट्रैक अस्पताल के रूप में भी काम आ सकते हैं और 190 किमी प्रति घंटे की रफ्तार वाली हवा को झेल सकते हैं, साथ ही बर्फ जमने से भी बचाते हैं। इन्हें केरोसिन के बिना भी गर्म रखा जा सकता है और यह वेंटिलेशन के साथ ऑक्सीजन का स्तर बनाए रखते हैं।

सौर ऊर्जा से संचालित

‘पीक पॉड्स’ पर्यावरण के अनुकूल हैं और सौर ऊर्जा से चलते हैं, जिससे वे शून्य उत्सर्जन करते हैं और मोटर पंप, लाइट, और चार्जिंग पॉइंट जैसे उपकरणों के लिए आत्मनिर्भर ऊर्जा प्रदान करते हैं। फिलहाल, बर्फीले क्षेत्रों में जवानों को केरोसिन आधारित हीटर और पावर जेन-सेट की जरूरत होती है, जिससे ईंधन की लागत बढ़ जाती है। भविष्य में, सेना के लिए ऐसे शेल्टर्स की कल्पना की जा रही है, जो उन्नत एआई सिस्टम और अक्षय ऊर्जा संसाधनों जैसे हाइड्रोजन और हवा से संचालित होंगे। ‘हाइड्रो कैप्चर’ की प्रक्रिया से वातावरण की नमी संघनित कर पानी भी उत्पन्न किया जा सकेगा।

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