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वन नेशन वन इलेक्शन को मोदी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है…

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मोदी कैबिनेट ने “वन नेशन, वन इलेक्शन” के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। कैबिनेट में इस प्रस्ताव को पास कर दिया गया है, और इसे संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा।

एक राष्ट्र एक चुनाव:  PM मोदी की अगुवाई वाली कैबिनेट ने भारत में एक देश एक चुनाव यानी वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. यह प्रस्ताव पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली हाई लेवल कमेटी की सिफारिशों पर आधारित है. इसको लेकर अभी से विवाद शुरू हो गया है. 

वन नेशन वन इलेक्शन पर विपक्ष एकमत नहीं है और वो कमियां बता रहा है. वहीं, कुछ पार्टी इसके समर्थन में आई हैं. तो आइये जानते हैं कि वन नेशन वन इलेक्शन से क्या फायदे हो सकते हैं और क्या नुकसान : 

जानें क्या है प्रस्ताव 

इस प्रस्ताव के अनुसार,  “इसमें देश में दो चरणों में चुनाव होंगे. पहले चरण में लोकसभा, विधानसभा चुनाव  होंगे. जबकि दूसरे चरण में नगर निकाय और पंचायत चुनाव होंगे. ये चुनाव 100 दिन के बाद ही होंगे. सभी चुनाव के लिए एक वोटर लिस्ट बनेगी.” वहीं, इस प्रस्ताव में आगे कहा गया है,’अगर केंद्र या राज्य सरकार अपना बहुमत खो देती हैं तो ऐसे हालात में बची हुई अवधि के लिए चुनाव होंगे. 

जानें क्या है सरकार की प्लानिंग 

मोदी सरकार इस कार्यकाल में “वन नेशन, वन इलेक्शन” को लागू करने की योजना बना रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया है कि इस योजना के कार्यान्वयन के लिए एक समिति बनाई जाएगी। सरकार ने यह भी बताया है कि सभी राजनीतिक दलों से सहमति बनाई जाएगी और प्रस्ताव को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा।

संवैधानिक संशोधन:

इस विधेयक को पारित करने के लिए इसे दोनों सदनों से अनुमोदन प्राप्त करना होगा। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356 में संशोधन करना होगा, जो दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता है। संविधान संशोधन करना सरकार के लिए कठिन काम है, और विपक्ष अक्सर संविधान में बदलाव को लेकर सरकार की आलोचना करता है।

क्षेत्रीय दलों का प्रभाव:

विपक्ष का कहना है कि “वन नेशन, वन इलेक्शन” से क्षेत्रीय दलों की स्थिति प्रभावित हो सकती है। उनका मानना है कि इससे क्षेत्रीय मुद्दे दब सकते हैं और विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय दलों को नुकसान उठाना पड़ सकता है, क्योंकि मतदाता अधिकतर राष्ट्रीय पार्टियों पर ध्यान देंगे।

सरकार को पड़ेगी इतने संख्या बल की जरूरत

इस विधेयक को पास कराने के लिए  कम से कम 362 और राज्यसभा में 163 सदस्यों का समर्थन जरूरी है. इसके अलावा 15 राज्यों के विधानसभा का अनुमोदन भी जरूरी होगा. लोकसभा में NDA के पास 293 और  राज्यसभा में 119 सदस्य हैं. ऐसे में सरकार को विपक्ष को भी भरोसे में लेना होगा. 

सरकार के सामने है चुनौतियां 

शुरुआती दौर में सरकार को मैनेजमेंट से लेकर मैनपावर की कमी से जूझना पड़ सकता है. इसके अलावा सरकार को ईवीएम और पेपर ट्रेलर मशीनें खरीदनी होंगी . इसके लिए अलग से स्टोरेज बनाना होगा. इसमें हजारों करोड़ का अतिरिक्त खर्चा हो सकता है. 

जानें क्या होगा देश को फायदा 

सरकार का कहना है कि एक साथ चुनाव होने पर करोड़ों की बचत होगी. इससे बार बार बार चुनाव कराने से निजात मिलेगा. विकास कार्यों पर इसका असर नहीं पड़ेगा. बार-बार आचार संहिता लगने से विकास कार्यों पर असर पड़ता है. वहीं, काले धन पर लगाम भी लगेगी.  

इन पार्टियों ने किया समर्थन 

AIADMK, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन, अपना दल (सोने लाल), असम गण परिषद, बीजू जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी (R), मिजो नेशनल फ्रंट, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, शिवसेना, जनता दल (यूनाइटेड), सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, शिरोमणि अकाली दल और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है. 

इन दलों ने जताया विरोध

AIUDF, तृणमूल कांग्रेस, AIMIM, CPI, DMK, नगा पीपुल्स फ्रंट और सपा ने इस प्रस्ताव का विरोध किया. सीपीआई (ML) लिबरेशन और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया ने भी इसका विरोध किया. इसके अलावा राष्ट्रीय लोक जनता दल, भारतीय समाज पार्टी, गोरखा नेशनल लिबरल फ्रंट, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा, राष्ट्रीय लोक जन शक्ति पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार) ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है. 

इन दलों ने नहीं दी है प्रतिक्रिया 

इस प्रस्ताव पर भारत राष्ट्र समिति, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस, जनता दल (सेक्युलर), झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस (एम), नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट, तेलुगु देशम पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी है.

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