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शरीयत कानून और यूसीसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा सवाल…

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याचिकाकर्ता का कहना है कि उसका परिवार नास्तिक है, लेकिन शरीयत के नियमों के कारण पिता चाहकर भी उसे अपनी 1 तिहाई से अधिक संपत्ति नहीं दे सकते। इस दौरान कोर्ट ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का उल्लेख किया।

सुप्रीम कोर्ट: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न पर विचार करने के लिए केंद्र को जवाब दाखिल करने को कहा है: क्या मुस्लिम परिवार में जन्म लेने के बावजूद एक नास्तिक व्यक्ति पर शरीयत के बजाय सामान्य सिविल कानून लागू हो सकते हैं? यह याचिका केरल की रहने वाली साफिया पीएम ने दाखिल की है, जिन्होंने कहा कि उनका परिवार नास्तिक है, लेकिन शरीयत के प्रावधानों के कारण उनके पिता उन्हें अपनी एक तिहाई से अधिक संपत्ति नहीं दे सकते। उन्हें चिंता है कि बाकी संपत्ति पर भविष्य में उनके पिता के भाइयों का कब्जा हो सकता है।

इस मामले की सुनवाई 29 अप्रैल को हुई थी, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रश्न को महत्वपूर्ण बताते हुए अटॉर्नी जनरल से कहा था कि वे इस मामले में सहायता के लिए एक वकील नियुक्त करें। 24 अक्टूबर 2024 को हुई सुनवाई में, एडिशनल सॉलीसीटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि केंद्र सरकार इस पर जवाब दाखिल करेगी और यह भी कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने पर विचार चल रहा है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह कब तक लागू होगा।

साफिया और उनके पिता नास्तिक हैं, लेकिन जन्म से मुस्लिम होने के कारण उन पर शरीयत कानून लागू होता है। याचिकाकर्ता का भाई डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है और साफिया उनकी देखभाल करती हैं। शरीयत कानून के अनुसार, बेटी को बेटे की तुलना में आधी संपत्ति मिलती है, जिससे पिता केवल बेटी को एक तिहाई संपत्ति दे सकते हैं, जबकि बाकी दो तिहाई बेटे को देनी होती है। अगर भविष्य में पिता और भाई का निधन हो जाता है, तो भाई की हिस्से वाली संपत्ति पर पिता के भाइयों का दावा बन जाएगा।

पर्सनल लॉ मानने के लिए नहीं किया जाना चाहिए बाध्य

पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क किया था कि संविधान का अनुच्छेद 25 हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है, और यह भी अधिकार देता है कि कोई व्यक्ति नास्तिक बन सकता है। उनका कहना था कि किसी विशेष धर्म को मानने वाले परिवार में जन्म लेने के कारण किसी व्यक्ति को उस धर्म के पर्सनल लॉ का पालन करने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। वकील ने यह भी बताया कि यदि याचिकाकर्ता और उनके पिता लिखित में यह घोषणा कर दें कि वे मुस्लिम नहीं हैं, तब भी शरीयत के अनुसार उनकी संपत्ति पर रिश्तेदारों का दावा बन सकता है।

शरीयत एक्ट की धारा 3 में यह प्रावधान है कि मुस्लिम व्यक्ति को यह स्वीकार करना होता है कि वह शरीयत के अनुसार उत्तराधिकार के नियमों का पालन करेगा। लेकिन जो ऐसा नहीं करते, उन्हें भारतीय उत्तराधिकार कानून का लाभ नहीं मिलता, क्योंकि उत्तराधिकार कानून की धारा 58 में कहा गया है कि यह मुसलमानों पर लागू नहीं हो सकता।

पिछली सुनवाई में, चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि हिंदू परिवार में जन्म लेने वाले और हिंदू धर्म का पालन न करने वाले पर सामान्य धर्मनिरपेक्ष कानून लागू होते हैं, जबकि मुस्लिम परिवार में जन्म लेने वाले और इस्लाम को न मानने वाले पर शरीयत कानून का पालन करना पड़ता है। इस पर विस्तार से सुनवाई की आवश्यकता है।

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