अलीपुर की एक अतिरिक्त सत्र अदालत के जज ने सुदीप बनर्जी की हत्या के मामले में 24 अप्रैल, 2015 को गरियाहाट थाने में दर्ज केस में 25 मई, 2017 को रणदीप को IPC की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया था।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति की आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया, यह बताते हुए कि वह अपने बड़े भाई की हत्या का दोषी नहीं है और उसने नौ साल से अधिक समय तक हिरासत में बिताया है। जस्टिस सौमेन सेन की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि अभियोजन पक्ष हत्या से संबंधित परिस्थितियों को जोड़ने और अपराध को सभी उचित संदेहों से परे साबित करने में असफल रहा।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अपीलकर्ता रणदीप बनर्जी अपने बड़े भाई की हत्या का दोषी नहीं है, जो कि न्यूरोलॉजिकल समस्याओं से ग्रसित थे। हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा दी गई दोषसिद्धि को रद्द करते हुए उसे रिहा करने का आदेश दिया।
पीठ में जस्टिस उदय कुमार भी शामिल थे। अलीपुर की एक अतिरिक्त सत्र अदालत के जज ने 25 मई, 2017 को सुदीप बनर्जी की हत्या के सिलसिले में रणदीप को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया था।
रणदीप के वकील सोहम बनर्जी ने बताया कि उसे 24 अप्रैल, 2015 को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह हिरासत में है। सुदीप, जो 2009 से रणदीप के साथ बल्लीगंज गार्डन में रह रहा था, अपनी पत्नी और बेटे से अलग हो चुका था। कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि रणदीप अविवाहित और बेरोजगार था।
पिछले महीने दिए गए फैसले में पीठ ने कहा कि दोषसिद्धि केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित थी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य केवल तभी प्रभावी हो सकते हैं जब सभी कड़ियां आरोपी को घटना से जोड़ती हों।