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क्या है यूपी का मदरसा एक्ट…

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अंशुमान सिंह राठौड़ नामक एक व्यक्ति ने यूपी मदरसा एक्ट की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट ने 22 मार्च को इस कानून को गलत ठहराते हुए अपना निर्णय सुनाया।

मदरसा एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने मंगलवार (5 नवंबर 2024) को एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए यूपी मदरसा एक्ट को वैध ठहराया। कोर्ट ने इस संबंध में इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय को खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट में कुछ नए प्रावधान भी जोड़े हैं, और विभिन्न मुस्लिम संगठनों के प्रमुखों ने इस फैसले का स्वागत किया है। अब सवाल उठ रहा है कि यूपी मदरसा एक्ट क्या है, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने सही करार दिया है।

यूपी मदरसा एक्ट क्या है?

उत्तर प्रदेश सरकार ने 2004 में राज्य में मदरसा शिक्षा को व्यवस्थित करने के लिए एक विशेष कानून बनाया था, जिसे यूपी मदरसा बोर्ड अधिनियम कहा जाता है। इस कानून के तहत उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड का गठन किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य राज्य में संचालित मदरसों की शिक्षा को प्रबंधित और नियोजित करना है। इस एक्ट में अरबी, उर्दू, फारसी, इस्लामिक स्टडीज, तिब्ब (पारंपरिक चिकित्सा), और दर्शनशास्त्र जैसी पारंपरिक इस्लामी शिक्षा को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। यह कानून मदरसों को एक संरचित पाठ्यक्रम के अनुसार संचालित करने की रूपरेखा प्रदान करता है, ताकि धार्मिक और सांस्कृतिक अध्ययन के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा का भी समावेश हो सके।

उत्तर प्रदेश में कितने मदरसे?

उत्तर प्रदेश में वर्तमान में लगभग 25,000 मदरसे संचालित हो रहे हैं, जिनमें से करीब 16,000 मदरसों ने यूपी मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त की है, जबकि लगभग 8,500 मदरसे बिना मान्यता के चल रहे हैं।

हाई कोर्ट का निर्णय

यूपी सरकार के खिलाफ मदरसा एक्ट को चुनौती देते हुए अंशुमान सिंह राठौड़ नामक एक व्यक्ति ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट ने 22 मार्च को कहा था कि यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 ‘असंवैधानिक’ है और यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को सामान्य स्कूलिंग सिस्टम में शामिल करे। इसके साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा था कि सरकार के पास धार्मिक शिक्षा के लिए कोई विशेष बोर्ड बनाने का अधिकार नहीं है।

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