ऑल इंडिया इमाम असोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना साजिद रशीदी ने कहा कि हम मदरसों के लिए सरकारी धन नहीं मांगते, लेकिन जब सरकार दीपोत्सव जैसे आयोजनों पर पैसा खर्च कर सकती है, तो मदरसों को क्यों नहीं?
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को यूपी मदरसा एक्ट के संबंध में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए इस एक्ट को मान्यता दी। इस फैसले पर ऑल इंडिया इमाम असोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना साजिद रशीदी ने मिश्रित प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए प्रदेश की योगी सरकार पर कड़ा हमला बोला।
मौलाना साजिद रशीदी ने कहा, “हम सरकार से कोई फंड नहीं लेना चाहते। लेकिन आप मदरसों को धन नहीं देना चाहते हैं, जबकि प्राण प्रतिष्ठा और दीपोत्सव जैसे आयोजनों पर करोड़ों रुपये खर्च करते हैं। यह उनकी दोहरी नीति को दर्शाता है और उनके कथन और कार्यों में अंतर को स्पष्ट करता है।” उन्होंने यह भी कहा कि मदरसा कोई ऐसा डिग्री कोर्स नहीं कराता है जो सरकारी नौकरी के लिए मान्य हो।
खालिद रशीद फिरंगी ने क्या कहा
लखनऊ की ईदगाह के इमाम और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फिरंगी ने यूपी मदरसा एक्ट के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि इस फैसले से मदरसों से जुड़े लोगों में खुशी की लहर है। मौलाना ने यह भी बताया कि यूपी मदरसा अधिनियम का मसौदा यूपी सरकार ने ही तैयार किया था, इसलिए यह असंवैधानिक कैसे हो सकता है। उन्होंने कहा कि मदरसों में हम इस्लामी शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा भी प्रदान करते हैं।
इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला क्या था?
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी सरकार को निर्देश दिया था कि वह राज्य के विभिन्न मदरसों में पढ़ रहे छात्रों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में शामिल करे। सुप्रीम कोर्ट ने ‘उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम-2004’ को रद्द करने के हाई कोर्ट के आदेश पर 5 अप्रैल को अंतरिम रोक लगाकर करीब 17 लाख मदरसा छात्रों को राहत दी थी।
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले से निराश होकर यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस मामले में कई बार सुनवाई हुई, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए ‘उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004’ की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, कुछ प्रावधानों को छोड़कर।