महाराणा प्रताप की 483वीं जयंती पर शहर में कई आयोजन किए जाएंगे। यह आयोजन उनके वीरता और महत्त्व को समर्पित होंगे और उनकी याद में मनाए जाएंगे।
उदयपुर समाचार: वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप, जिसकी वीरता और मातृभूमि के प्रति प्रेम और समर्पण को पूरा देश जानता है, ने कभी भी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया और उसके साथ मुकाबला किया। आज उनकी 483वीं जयंती मनाई जा रही है। मेवाड़ में इसे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर कई कार्यक्रम होंगे और लोग उनकी जन्मस्थानी, राज तिलक स्थल और अन्य स्थानों पर जाएंगे। आइए, इतिहासविद प्रोफेसर चंद्रशेखर शर्मा के अनुसार कुंभलगढ़ किले से लेकर उदयपुर तक महाराणा प्रताप के सफर की जानकारी प्राप्त करें।
कुम्भलगढ़ में मिला शस्त्र और शास्त्र का ज्ञान
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुम्भलगढ़ में हुआ, जो कि विक्रम संवत 1597 के अनुसार है। यह किला उदयपुर संभाग के राजसमन्द जिले में स्थित है। इस विशाल किले को अजयगढ़ भी कहा जाता है, क्योंकि इसे कभी भी हराया नहीं जा सका। महाराणा प्रताप अपना बाल्यकाल यहीं बिताएं, और एक साल बाद, 1541 में, वह चित्तौड़गढ़ किले की ओर गए, जहां उन्होंने 1546 तक रहा। उसके बाद कुम्भलगढ़ में, अगले 10 साल तक, माता जयवंती बाई और सामंत जयमल के प्रभाव में, वह शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा प्राप्त की।
वर्ष 1568 में, अकबर ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर हमला किया। इसके बाद, महाराणा प्रताप ने युद्ध नीति के अनुसार अपने पिता महाराणा उदय सिंह के साथ उदयपुर गिरवा में रिटायर हो गए। तत्पश्चात, उनके पिता की मृत्यु हुई, जो 28 फरवरी 1572 को हुई। इसके बाद, महाराणा प्रताप ने गोगुन्दा के श्मशान क्षेत्र में महादेव मंदिर की बावड़ी के पास अपना राजतिलक स्थानांतरण किया। गोगुन्दा उदयपुर से लगभग 30 किलोमीटर दूर है। आज भी वहां उनकी राजतिलक स्थली स्थापित है।
हल्दी घाटी का युद्ध कब हुआ था?
अब तक के घटनाक्रमों के आधार पर, राजतिलक के चार साल बाद ही अकबर के आक्रमण शुरू हो गए। वर्ष 1572 में हल्दी घाटी का युद्ध हुआ, जिसके बारे में लोगों को सभी ज्ञात है। इस युद्ध में राजपूती तलवार ने मुग़लों को धूल चटाई। साल 1576 से 1586 तक, अकबर के आक्रमण जारी रहे। इस समय में, महाराणा प्रताप ने राजपाट छोड़कर अपनी सेना के साथ जंगलों में रहा। उन्होंने मायरा की गुफा, जावर माइंस, कमलनाथ और अन्य स्थानों को आराम के लिए बना रखा था, जहां उनके पास हथियार और युद्ध नीतियां थीं। साल 1581 तक, दिवेर से लेकर कुम्भलगढ़ तक महाराणा प्रताप ने मुग़लों की 36 छावनियों को जीत लिया। इस दौरान, लोग कहते थे कि जहां राणा होता है, वहीं मेवाड़ की राजधानी होती है।
चावंड को राजधानी बनाया, वहीं ली अंतिम सांस
अकबर ने कई सालों तक मेवाड़ के खिलाफ युद्ध चलाया, लेकिन उसे मेवाड़ को जीतने में सफलता नहीं मिली। फिर, वर्ष 1586 में महाराणा प्रताप ने चावंड को मेवाड़ की राजधानी बनाया और 12 साल तक उसका शासन चलाया। साल 1597 में उनकी मृत्यु हो गई। चावंड उदयपुर से लगभग 70 किलोमीटर दूर है। महाराणा प्रताप का किला अब खंडहर बन चुका है। उनका नाम महाराणा प्रताप, मेवाड़, महाराणा उदय सिंह, राजपुताना, एकलिंगजी मंदिर, उदयपुर, कुम्भलगढ़ किला, चावंड, गोगुंदा और सिटी पैलेस उदयपुर आदि से जुड़ा हुआ है।