चीन ने हाल ही में ईरान और सऊदी अरब के बीच राजनयिक संबंधों को पुनः स्थापित करने में मदद की थी।
भारत पर सऊदी-चीन संबंध प्रभाव: सऊदी क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने हाल ही में 10वें अरब-चीन व्यापार सम्मेलन का आयोजन किया है। यह कार्यक्रम 11-12 जून 2023 के बीच अब्दुलअज़ीज़ अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन केंद्र रियाद में आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य था चीन और अरब देशों के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ाने के लिए व्यापार में निवेश करना।
10वें अरब-चीन व्यापार सम्मेलन के पहले दिन, 30 निवेश समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए और इसमें लगभग 10 बिलियन डॉलर के करीब के सौदे हुए हैं। इन समझौतों में प्राथमिकता दी गई क्षेत्रों में टेक्नोलॉजी, प्राकृतिक ऊर्जा संसाधन, कृषि, रियल एस्टेट, खनन, पर्यटन और स्वास्थ्य क्षेत्र शामिल हैं।
भारत के लिए चिंता का सबब
सऊदी अरब और चीन के बीच बढ़ती दोस्ती भारत के लिए चिंता का कारण बन सकती है। चीन की तरफ से भारत के साथ संबंध बेहतर रखने वाले देशों के साथ समझौते करने की वजह से यह संभव है।
हाल ही में श्रीनगर में हुए जी-20 बैठक में सऊदी अरब ने चीन के कहने पर किनारा किया था। इसके अलावा, चीन के अलावा तुर्की, मिस्र, और पाकिस्तान ने भी अपने अधिकारियों को बैठक में शामिल नहीं किया था और पाकिस्तान ने इस बात पर आपत्ति दर्ज की थी। इससे यह ज्ञात होता है कि कुछ देशों ने चीन के पक्ष लिए हुए इस बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया है।
इस तरह की स्थिति में चीन और उसके संबंध बढ़ाने वाले देशों के मध्य समझौतों का असर भारतीय सुरक्षा और राजनीतिक मामलों पर हो सकता है। चीन की संबंधों में और उसके नेतृत्व में हो रही परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए, भारत को अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा और अपने द्विपक्षीय संबंधों की सुरक्षा पर विचार करना होगा।
चीन का भारत के खिलाफ प्लान
चीन की गतिविधियां दिखा रही हैं कि वह अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए मध्य पूर्व और ईरान जैसे देशों के साथ तालमेल बढ़ाने की कोशिश कर रही है। इसके बाद चीन का सऊदी अरब के साथ बिजनेस डील करना इस दिशा में एक और कदम है। यह संकेत देता है कि चीन अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए अपने व्यापारिक और राजनीतिक स्थान को मजबूत करने की कोशिश कर रही है।
दूसरी ओर, रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव द्वारा बताया गया कि रूस के भारतीय बैंकों में अरबों रुपये पड़े हैं, लेकिन रूस उन रुपयों का उपयोग नहीं कर सकता। यह सुझाव देता है कि भारत रूपयों में बिजनेस करने की बात कहने के बावजूद अभी तक कोई सौदा नहीं हुआ है। यह चीन के संबंधों के साथ भारत की बैंकिंग और व्यापारिक आयात-निर्यात क्षेत्र में चाल बदलने की उम्मीदों को चुनौती देता है। इससे यह भी प्रकट होता है कि चीन चालाकी से अपने व्यापारिक मानदंडों का उपयोग कर अपने हितों को बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
चीन के व्यापारिक और राजनीतिक संबंधों की बदलती दुनिया में चिंता करना सामर्थ्यशाली हो सकता है, और इसे सावधानीपूर्वक देखा जाना चाहिए। भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को संरक्षित रखने और अपने व्यापारिक संबंधों को स्थायी बनाने के लिए उचित सुरक्षा और विदेशी नीतियों का प्रबंधन करना होगा।