सुप्रीम कोर्ट आज अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) का अल्पसंख्यक दर्जा रहेगा या खत्म होगा इस पर अपना फैसला सुनाएगा.
अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय: सुप्रीम कोर्ट आज (8 नवंबर) को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जा मिलने या नहीं मिलने के मुद्दे पर अपना फैसला सुनाएगा। अनुच्छेद 30 धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार प्रदान करता है।
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस विवादास्पद मुद्दे पर अपना निर्णय देगी। पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा शामिल हैं। इस मामले में आठ दिनों तक दलीलें सुनने के बाद, 1 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर कहा था कि एएमयू अधिनियम में 1981 के संशोधन ने इसे अल्पसंख्यक दर्जा तो दिया, लेकिन यह संस्थान को 1951 से पहले की स्थिति में बहाल नहीं कर सका। 1951 का संशोधन यूनिवर्सिटी में मुस्लिम छात्रों के लिए अनिवार्य धार्मिक शिक्षा को समाप्त करने का प्रावधान करता है। एएमयू की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा मोहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज के रूप में की गई थी, और इसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के लिए शिक्षा प्रदान करना था।
1920 में यूनिवर्सिटी में हुआ था तब्दील
1920 में, वर्षों बाद, यह ब्रिटिश राज के दौरान एक विश्वविद्यालय के रूप में परिवर्तित हो गया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अन्य ने तर्क किया कि एक ऐसा विश्वविद्यालय, जो केंद्र से भारी धन प्राप्त करता है और जिसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया है, किसी विशेष धार्मिक समुदाय से जुड़ा होने का दावा नहीं कर सकता।
उन्होंने यह भी कहा कि 1951 में एएमयू अधिनियम में संशोधन के बाद, जब मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज को विश्वविद्यालय में बदलकर केंद्र सरकार से फंड प्राप्त किया गया, तो इसने अपना अल्पसंख्यक चरित्र छोड़ दिया।
एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने का विरोध करने वाले एक वकील ने यह दावा किया था कि 2019 से 2023 के बीच उसे केंद्र सरकार से 5,000 करोड़ रुपये से अधिक मिले हैं, जो दिल्ली विश्वविद्यालय को मिले धन से लगभग दोगुना है।
यह उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1981 के उस कानून के प्रावधान को खारिज कर दिया था, जिसके तहत एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया था। इस फैसले के खिलाफ एएमयू और अन्य पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी।