MITCRM ने NEHU (नॉर्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी) में विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों के प्रति पूर्ण समर्थन व्यक्त किया है। प्रदर्शनकारी छात्रों के साथ एकजुटता दिखाते हुए, एमआईटीसीआरएम ने तीन महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं।
मेघालय: मेघालय के प्रमुख संगठन, मेघालय स्वदेशी जनजातीय अधिकार संविधान अधिकार आंदोलन (MITCRM) ने NEHU (नॉर्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी) में आंदोलनरत छात्रों के प्रति अपना पूर्ण समर्थन प्रकट किया है। छात्रों की मांगों में विश्वविद्यालय में पारदर्शिता, जवाबदेही और कुलपति डॉ. शुक्ला को हटाने की मांग शामिल है।
आंदोलनकारी छात्रों के साथ एकजुटता दिखाते हुए MITCRM ने तीन महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। इस संदर्भ में MITCRM के सलाहकार, इरविन के. सियेम सुत्ंगा ने कहा, “हम भूख हड़ताल पर बैठे छात्रों का समर्थन करने के लिए यहां आए हैं।”
MITCRM के सलाहकार का बयान
इस अवसर पर MITCRM के सलाहकार, इरविन के. सियेम सुत्ंगा ने कहा, “हमारा संगठन 2017 से सक्रिय है, और इस मामले की गंभीरता को देखते हुए हमारी जिम्मेदारी और भी अधिक बढ़ गई है, विशेषकर जब NEHU जैसे प्रतिष्ठित संस्थान की छवि मौजूदा प्रशासनिक नीतियों से प्रभावित हो रही है।”
MITCRM ने लिए बड़े फैसले
- पूर्ण समर्थन
MITCRM ने छात्रों की मांगों को, खासकर कुलपति को हटाने की मांग, पूरी तरह समर्थन दिया है। संगठन का मानना है कि कुलपति के कार्य आदिवासी समुदाय और स्थानीय हितों के खिलाफ हैं। - राष्ट्रपति को पत्र
संगठन ने भारत के राष्ट्रपति, जो NEHU के कुलाधिपति भी हैं, को पत्र लिखने का फैसला किया है। इस पत्र के जरिये राष्ट्रपति को छात्रों की मांगों और वर्तमान स्थिति से अवगत कराया जाएगा और उनसे तत्काल समाधान की अपील की जाएगी। - पर्सोना नॉन ग्राटा की घोषणा
MITCRM ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए डॉ. शुक्ला को “पर्सोना नॉन ग्राटा” (अवांछित व्यक्ति) घोषित किया है। इसका उद्देश्य उन लोगों का सामाजिक बहिष्कार करना है जो आदिवासी संस्कृति, परंपराओं और उत्तर पूर्व क्षेत्र की भावनाओं का अनादर करते हैं। इस निर्णय के तहत, मेघालय में डॉ. शुक्ला का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा।
‘केंद्र को भेजा गया संदेश’
इरविन सुत्ंगा ने यह भी स्पष्ट किया कि इस कदम के जरिए केंद्र सरकार को एक सख्त संदेश भेजा गया है कि ऐसे व्यक्तियों की नियुक्ति न की जाए जो उत्तर पूर्व की सांस्कृतिक और सामाजिक भावनाओं को नहीं समझते। संगठन ने यह निर्णय शैक्षणिक संस्थानों की गरिमा और क्षेत्रीय समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए लिया है, ताकि मेघालय और समूचे पूर्वोत्तर के शैक्षणिक समुदाय का विकास बिना बाहरी दबाव और भेदभाव के हो सके।